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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

 

जार की अन्त्येष्टि

अब से कुछ समय पहले तक एशिया भक्ष्य और यूरोप भक्षक था। जिस समय भारत को अंग्रेज़ों ने पदाक्रांत किया, उस समय एशिया के सभी मुस्लिम देश (अरब, तुर्किस्तान, ईरान, अफगानिस्तान आदि) जो दक्षिण-पश्चिम में फैले हुए हैं-निर्बल और अराजक थे। पूर्व की ओर के बौद्धराष्ट्र चीन, जापान, स्याम आदि प्रस्तुप्तावस्था में थे। दक्षिण की ओर के छोटे-छोटे देश और द्वीप फ्रांसीसी, डच और स्पेनिश लोगों ने हड़प लिये थे। उत्तर में उजाड़ साइबेरिया देश था, जो रूस का कालापानी था। ऐसी परिस्थिति में अंग्रेज़ों ने अपने साम्राज्य के कांजीहाउस में भारत-रूपी दुधारू गाय को बाँधकर मजे में दूध पीना शुरू किया। उस समय अंग्रेज़ों की यह धारणा भी नहीं थी कि यह सीधी-सादी गाय एशियाई राष्ट्रों के हरे-भरे चरागाहों में चरने के लिए कान-पूँछ हिलायेगी। इस परिस्थिति में उत्तर की ओर से पाँव फैलाने वाला रूस और दक्षिण की ओर से अपना सिर ऊँचा उठाने वाला इंग्लैंड-दोनों पहले-पहल प्रतिस्पद्ध हुए। इसके बाद चीन और जापान का युद्ध हुआ। यूरोपियन युद्धकला की सहायता से जापान विजयी हुआ, जिससे पूर्वी एशिया में एक हलचल उत्पन्न हो गयी और यूरोप को यह भय होने से वे यूरोपियन राष्ट्रों को तहस-नहस कर डालेंगे। इसके दस वर्ष बाद जापान ने रूस को पछाड़कर इस भय को सत्य कर दिया। यूरोप को मालूम होने लगा कि एशिया के पूर्व में सूर्योदय हो गया है। जापान की इस विजय से 'गोरे राष्ट्र अजेय हैं वह गर्व चकनाचूर हो गया। एशिया में हलचल मच गयी। जापान खम ठोककर यूरोपियन राष्ट्रों की पंक्ति में जा बैठा। स्याम अपना घर सुधारने लगा।

ईरान में शाह और जनता के बीच बखेड़े होने शुरू हो गये। टकों में तरुण संघ स्थापित हो गया। इसके दस वर्ष बाद यूरोपियन महायुद्ध आ धमका।

पृथ्वी के नक्शे की ओर यदि हम देखें तो प्रतीत होगा कि एशिया और यूरोप मिलकर पश्चिम की देशान्तर रेखा के 20 अंश से पूर्व की ओर 190 अंश तक यानी 210 अंश लम्बाई का और दक्षिणोत्तर भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर 70 अक्षांश चौड़ाई का एक प्रचंड भूमिखण्ड दिखाई पड़ता है। वास्तव में यूरोप एशिया ही का बढ़ा हुआ एक खण्ड है। जिस प्रकार एशिया के दक्षिण में अरब, भारत और मलाया समुद्र में घुसे हुए प्रायद्वीप हैं, वैसे ही पश्चिम की ओर यूरोप भी प्रायद्वीप है। एशिया, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और अमेरिका इन भूखण्डों में प्राचीन काल से मनुष्य की आबादी का पता चलता है; परन्तु यूरोप की आबादी ढाई-तीन हज़ार वर्ष से अधिक पुरानी नहीं है। उसका क्षेत्रफल भी एशिया के एक मामूली देश के बराबर है, परन्तु वह जल-प्रलय, भूडोल और ज्वालामुखी आदि भौतिक उत्पातों से बना और एशिया से पश्चिम की ओर गये हुए आर्य और तूरान आक्रमणकारियों से बसा हुआ है। इस नगण्य भूखण्ड में इतनी विचित्रता, इतनी उधेड़बुन और इतनी गड़बड़ एकत्र हो गयी है कि संसार के इतिहास के 10 में से 9 पृष्ठ इन्हीं से भर गये हैं। इस विचित्र देश के छोटे-छोटे राष्ट्रों ने पृथ्वी-भर के मनुष्यों के आधिभौतिक और आध्यात्मिक जीवन को पलट दिया है।

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