अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
हिन्द महासागर के बहुत-से द्वीप अंग्रेज़ों के अधिकार में आ गये। वहाँ पर इन्होंने बहुत बड़े-बड़े कारखाने और खेती-बाड़ी फैला दी है। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड भी अंग्रेज़ों के डोमेनियन हैं। जर्मनी को पेट भरने के लिए कोई गुन्जाइश नहीं रह गयी थी। परिणाम यह हुआ कि महायुद्ध का सूत्रपात्र हुआ। इस महायुद्ध ने यूरोपियन राष्ट्रों के संघ के कंकाल को खोखला बना दिया। चूँकि इस युद्ध में इंग्लैण्ड और फ्रांस को एशिया से बहुत कुछ मदद मिलनी थी, इसलिए उससे मदद ली गयी। और एशियाटिक लोग यूरोपियन लोगों से कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़े। इसका परिणाम यह हुआ कि लीग आफ नेशन्स में एशिया के राष्ट्रों की कुर्सी यूरोप के राष्ट्रों की कुर्सी के बराबर रख दी गयी। इस प्रकार चीन-जापान युद्ध और रूस-जापान युद्ध तथा गत यूरोपियन महायुद्ध, इन तीन सीढ़ियों पर लगा।
इससे एशिया खण्ड में नया युग शुरू हो गया। चूँकि यूरोप के बड़े-बड़े राष्ट्र कमजोर और छोटे-छोटे राष्ट्र आवारागर्द हो गये थे, इसलिए एशिया के नवजाग्रत् राष्ट्रों को सुगठित होने का बहुत मौका मिला। यूरोप के राष्ट्र अन्त:कलह में लगे हुए थे। इंग्लैण्ड ने सोवियत रूस के लिए यूरोप के फाटक बन्द कर दिये थे। इसपर रशियन कम्युनिस्ट लोगों ने भारतवर्ष और चीन में अंग्रेज़ों के विरुद्ध बलवे उभारने शुरू कर दिये। इंग्लैण्ड और फ्रांस ने जर्मनी की जलसेना के हाथ-पाँव काट डाले तो जर्मनी ने अपने हवाईजहाजों से आकाश को पाट दिया। अब रूस और जर्मनी ने सलाह करके ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती देने का इरादा कर लिया। जर्मनी ने अपने कार्य के विषय में और सोवियत रूस ने अपने मुक्त व्यापार के कलह की चिनगारी छोड़ दी। इस महायुद्ध से जर्मनी के सभी उपनिवेश छिन गये, इसलिए व्यापार के सिवा उनका कोई ध्येय नहीं रह गया। मुल्क-फतह करने का पुराना ढर्रा, मालूम होता है हमेशा के लिए गया। जिस प्रकार बवंडर से वायु शुद्ध होती है, उसी प्रकार इस महायुद्ध ने यूरोप और एशिया को सम-संयोग का। रास्ता दिखला दिया है।
रूस की स्थिति बिलकुल ही निराली है। रूस लगभग तीन-चौथाई एशिया में है। इसलिए रूस के नवीन राष्ट्र ने अपने को एशियायी घोषित करके यूरोप की परेशान कर दिया है। इस समय आधे से अधिक एशिया का खण्ड रूस के हाथ में है। 'जार' के ज़माने में रूस की हालत बहुत बिगड़ी हुई थी, रूस का तमाम प्रांत उजाड़, दरिद्र और अराजक था, परन्तु बोल्शेविक क्रान्ति ने रूस में एक ऐसा नवीन जीवन उत्पन्न कर दिया, जिससे यूरोप के सारे राष्ट्र थर्रा उठे। उन्होंने अद्भुत कार्यों तथा शक्ति से लोगों को दिन-प्रतिदिन चकित करना शुरू कर दिया। वे लोग ईरान, अफगानिस्तान, भारत, चीन और तिब्बत में अपने हाथ-पाँव फैला रहे थे। उन्होंने अपनी रेलों का छोर पैसिफिक महासागर तक ला पहुँचाया। वे दक्षिण की ओर अफगानिस्तान और ईरान के किनारे-किनारे हिन्द महासागर के किनारे किसी बन्दरगाह पर पहुँचने की तैयारी कर रहे थे। सबसे बड़ी बात जो रूस ने की, वह धार्मिक सत्ता को राजनीति से दूर कर देने की है। अगर गौर से देखा जाए तो रूस की राज्यक्रान्ति एशिया के लिए एक अमर वरदान है!
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