लोगों की राय

अतिरिक्त >> बड़ी बेगम

बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

174 पाठक हैं

बड़ी बेगम...

"मगर प्यारी बेगम, मैं तुम्हारे बिना कैसे दुनिया में ज़िन्दा रहूँगा? मेरी ज़िन्दगी तुम हो, मेरी आँखों में सिर्फ तुम्हारी रोशनी है! तुम्हारे बिना दुनिया में मेरा कोई नहीं है।”

युवती की आँखों से आँसू ढरकने लगे। उसने पति के हाथों को प्यार से चूमकर कहा, "रहना पड़ेगा मेरे मालिक, मैं ज़िन्दा नहीं रह सकती, मैं आबोदाना नहीं ले सकती, आह! उस जालिम ने न मालूम मुझ जैसी कितनी बेबस-कमजोर औरतों को बर्बाद किया होगा। मुमकिन है वे सब अस्मतफरोश न हों, लेकिन इस मुगल सल्तनत में एक भी ऐसा बहादुर आदमी नहीं जो हम बेबसों को उस जालिम भेड़िये से बचाये? मेरे प्यारे मालिक, तुम वादा करो कि बदला लोगे।”

"मैं वादा करता हूँ प्यारी, कि जब तक मैं तुम्हारी बेहुर्मती का बदला न ले लैंगा चैन से न बैटुंगा। परवाह नहीं, चाहे जान भी चली जाये।”

"तो प्यारे, फिर मैं बड़ी खुशी से मर सकती हूँ। इसका मुझे बड़ा फख्र है।”

"मगर मेरी प्यारी बेगम, तुम अपने इस इरादे को बदल दो, खुदा के लिए मुझपर रहम करो, मैं तुम्हें उसी तरह आँखों की पुतली बनाकर रखूँगा।”

"नहीं प्यारे, मेरी गैरत यह इजाजत नहीं देती; इस तरह जलील होकर मैं किस तरह ज़िन्दा रह सकती हूँ! नहीं, नहीं, किसी भी तरह नहीं मालिक। एक मर्द की तरह तुम मुझे विदा करना-हम फिर मिलेंगे-और वैसे ही पाक-साफ जैसे उस दिन थे जबकि हम पहली बार मिले थे!” इतना कहते-कहते, उस बेगम की आँखों से आँसुओं की धार बहने लगी। उसकी सांस ज़ोर-ज़ोर से चलने लगी, और उसका सारा शरीर थर-थर कांपने लगा।

कुछ सुस्ताकर उसने कहा, "प्यारे, तुम्हें वह दिन याद है जब मैंने अपने मेहन्दी से रंगे हाथ तुम्हारे सुपुर्द किये थे, तुम्हें अपना बनाया था और तुमने मुझे अपनाकर निहाल किया था। हम लोग कितना हँसते थे, दुनिया कितनी मीठी लगती थी, दिन कैसे सुहावने थे, सूरज कैसा चमकता था, कोयल कैसी कूकती थी, रात कैसे हँसा करती थी, चाँद दूध बखेरकर दुनिया को कैसा बना देता था। हम लोग बातें करते थे, हँसते थे, रूठते थे, प्यार करते थे, लड़ते थे, फिर एक हो जाते थे। आह! इतनी जल्दी वे सब दिन खत्म हो गये!”

शाइश्ता खाँ ने उन्मत्त की तरह अपनी पत्नी को छाती से लगाकर कहा, "नहीं-नहीं, प्यारी, यह दुनिया वैसी ही है! देखी बाहर सूरज है, चाँद है, फूल हैं, उनमें खुशबू है। प्यारी, यह दुनिया वैसी ही मीठी है। आओ, एक बार हम फिर उसी तकह हंसें, लड़ें, रूठें और प्यार करें।"

उसने विह्वल होकर मुमूर्ष पत्नी के अनगिनत चुम्बन ले डाले। फिर वह उसकी छाती पर सिर रखकर फफक-फफककर रोने लगा।

बेगम भी रो रही थी। कुछ देर रो लेने पर जब जी हल्का हो गया तो शाइश्ता खाँ ने कहा, "तो प्यारी, कह दो कि हम लोग जियेंगे।”

"नहीं प्यारे, हमारी ज़िन्दगी में कीड़ा लग गया। अब हम उस तरह नहीं जी सकते। औरत की ज़िन्दगी उसकी अस्मत है, वह गयी तो ज़िन्दगी भी गयी! मेरे प्यारे शौहर, मुझे जाना होगा-मुझे मरना होगा ! मगर ओफ, यह कभी न सोचा था कि इतनी जल्द। ओफ ! ओफ!”

* * *

...Prev |

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book