अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
|
6 पाठकों को प्रिय 174 पाठक हैं |
बड़ी बेगम...
दलित कुसुम
शाइश्ता खाँ शाहजहाँ बादशाह का साला था और एक चतुर और उच्च अमीर था। उसकी स्त्री एक ईरानी अमीर की इकलौती बेटी थी। वह बड़ी सती, सच्चरित्र और पवित्रात्मा थी। जैसी अद्वितीय सुन्दरी थी वैसी ही अस्मत वाली भी थी। वह एक नयी उम्र की बड़ी नाजुक मिजाज, भावुक युवती थी।
शाहजहाँ की उसपर एक अमीर के यहाँ दावत में दृष्टि पड़ी। रिश्तेदार होने के कारण वह बादशाह के सामने आने को विवश की गयी थी। बूढ़े कामुक बादशाह ने अपनी बड़ी बेटी जहाँआरा के द्वारा उसे एक जियाफत देने रंगमहल में बुलवा लिया। बेगम जफरअली उसे फुसलाकर बादशाह के उस रहस्यपूर्ण कमरे में ले गयी, जिसमें अनगिनत सतियों का सतीत्व लूटा जा चुका था। भोली-भाली लड़की जैसे दाँव में फंस गयी और जब वहाँ उसने अपने को बादशाह के चंगुल में फंसकर असहायावस्था में पाया तो छूटने को बहुत हाथ-पैर मारे, बड़ी छटपटायी पर वह अपने को बचा न सकी। बादशाह ने उसका सतीत्व भग कर दिया। फिर वह बहुत-सी भेंट और नजराने देकर वापस भेज दी गयी।
परन्तु मुगल राज्य में जिस प्रकार की अन्य अमीरों की औरतें होती थीं-वह वैसी न थी। उसने घर आकर सब हाल अपने पति से कह दिया और खाना-पीना तथा वस्त्र बदलना भी छोड़ दिया। इस घटना को पन्द्रह दिन बीत चुके थे। वह कुचली हुई फूलमाला की तरह बिस्तर पर पड़ी रहती थी। तमाम घर-भर में उदासी छायी हुई थी। प्रात:काल का समय था। उसके नेत्रों में मरने का दृढ़ संकल्प था। उसके पलंग के पास उसका प्यारा पति बैठा था। दोनों खूब रो चुके थे। अब जिस प्रकार एक कठोर संकल्प करने का भाव उस सती के मुख पर था
उसी प्रकार बदला लेने का भाव उस युवक अमीर वीर के मुख पर भी था।
उसने कोमलता से पत्नी का हाथ अपने हाथ में थामकर कम्पित स्वर से कहा, ‘प्यारी, अपना यह खौफनाक इरादा छोड़ दी, जीती रही-मेरी नज़र में तुम पाक-साफ हो! मैं उस जालिम बादशाह से ऐसा बदला लूँगा कि दुनिया देखेगी!” बात पूरी करते-करते उसकी आँखों से आग निकलने लगी और काँपने लगा।
बेगम ने पति का हाथ दोनों हाथों में लेकर अपनी छाती पर रखा। वह कुछ देर चुपचाप आँखें बन्द किये पड़ी रही। फिर अपने क्षीण स्वर में कहा, "मेरे प्यारे शौहर, इतने ही दिनों में मैंने तुमसे वह प्यार पाया कि ज़िन्दगी का सब लुत्फ उठा लिया। अब मेरी ज़िन्दगी में किरकिरी मिल गयी। मैं नापाक कर दी गयी। अब मैं तुम्हारे लायक न रही। प्यारे, मेरे जिस जिस्म को उस नापाक कुत्ते ने छुआ है, मैं उसमें न रहूँगी। और ताकयामत तुम्हारा इन्तज़ार करूंगी!”
|