अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
जनरल पूरी ऊँचाई से अपने घोड़े पर तनकर बैठ गया। उसने उन खुदी हुई कब्रों को, कैदियों के नंगे शरीरों को और फिर उस सन्नाटे की रात को एक बार आँख भरकर देखा। उसके बाद उसकी दृष्टि अपने सैनिकों पर घूमी। उसने सैनिकों को संकेत किया। सैकड़ों बन्दूकें एकसाथ गरज उठीं। उस चाँदनी रात में, उस भयानक शीत में खड़े हुए वे दो सौ नरवर, जिनके खून के फव्वारे बहने लगे थे, अपनी खोदी हुई कब्रों में झुक गये। सेनापति की आज्ञा से सेना ने आगे डाल दी गयी। उनमें से बहुत-से लोग अभी जीवित थे, और जीवित ही ज़मीन में दफन कर दिये गये थे।
इसके कुछ ही दिन बाद तख्ता उलट चुका था। पेट्रोग्राड से दो हज़ार मील दूर साइबेरिया प्रदेश में टोबोलस्क में 22 अप्रैल, 1922 को लगभग दस बजे दिन को एक अद्भुत और वीर सरदार धीरे-धीरे घुसा। उसके साथ एक सौ पचास चुने हुए घुड़सवार थे। नगरवासियों ने देखकर परस्पर संकेत में बातें कीं, पर कौन और क्यों? इसका हाल कोई नहीं जानता था।
सवारों का यह दल सीधा नगर के प्रांत भाग में स्थित एक पुराने और विशाल मकान के खण्डहरों में घुस गया। सभी जानते थे, उस मकान में कुछ राजनीतिक अपराधी एक वर्ष से कैद हैं। परन्तु थोड़ी ही देर में नगरनिवासियों ने आश्चर्य से देखा, खुद जार और उसका परिवार बन्दी की भाँति उन सवारों से घिरा हुआ उस मकान से बाहर निकला और इकटेरिंगबर्ग गाँव की तरफ चल दिया।
सरदार का नाम वेसलीविच जेकोलिन था। वह सोवियत सरकार का प्रधान व्यक्ति था। जार कहाँ है, कैसा है इसके विषय में कोई नहीं जानता था। यह एक वर्ष से गुप्त कैद था। उस गुप्त कैद से उसे निकाल जेकोलिन ने उस गाँव में रख दिया। यह गाँव सोवियत दल का प्रधान अड्डा था। जार इस गाँव के
साधारण मकान में अपने परिवार तथा अन्य मनुष्यों सहित कैदी की तरह रहने लगे। इनपर ज्यूरोवस्की का पहरा था।
25 जुलाई की आधी रात का समय था। दो बजे ज्यूरोवस्की आया और उसने जार के दरवाज़े को खटखटाया। द्वार खुलने पर उसने जार को कपड़े पहन लेने का हुक्म दिया। इसके बाद जार को एक तहखाने में ले गये। उसकी स्त्री-बच्चे भी बुला लिया गये। उनके कमरे में कुल ग्यारह व्यक्ति ही गये-जार, जरीना, तेरह वर्ष का रोगी पुत्र, चार पुत्रियाँ, एक गृह-चिकित्सक, दासी, रसोइया और नौकर। इन ग्यारहों के पीछे ज्यूरोवस्की था और उसके पीछे बारह आदमी और थे। सभी चुप थे। ज्यूरोवस्की ने इन ग्यारह आदमियों के दो दल करके अपने सामने खड़ा किया। राजा, रानी और राजकुमारों के लिए कुर्सियाँ मँगायी गयी। खिड़कियों से पहरेदार लोग भयभीत मुद्रा से जो कुछ होने वाला था, देख रहे थे।
ज्यूरोवस्की ने कुछ भी शिष्टाचार न करके अपना ऑटोमैटिक पिस्तौल बाहर निकाला और जार को निशाना बनाकर दन से चला दिया। क्षण-भर में ही जार मरकर ज़मीन में लुढ़क गये। इसके दूसरे ही क्षण दस पिस्तौलों ने एकदम अग्नि-ज्वाला उगल दी। सभी बन्दी क्षण-भर में मार दिये गये। कमरे में पिस्तौलों की प्रलय-गर्जना और मरते हुओं की चीत्कार के बाद सन्नाटा छा गया। यह हृदयद्रावक और भयानक दृश्य देखकर सिपाही भी भयभीत हो गये। जार का छोटा पुत्र एलेक्स अपने माता-पिता के मृत शरीर पर गिरकर फूट-फूटकर रोने लगा। ज्यूरोवस्की ने तत्काल उसे दूर हटाया और गोली मार दी। गोली खाकर वह मरा नहीं, सिसकने लगा। ज्यूरोवस्की ने एक सिपाही को संकेत किया। उसने भारी-भारी पैर आगे बढ़ाये और अपनी संगीन उसके कोमल कलेजे में भोंक दी।
उस कमरे की दीवारें रक्त और माँस के छीछड़ों से भर गयी थीं। प्रात:काल चादरें लायी गयीं, उनमें मुर्दे लपेटे गये और बाहर खड़ी मोटरलारी में डाल दिये गये। ये मुर्दे जंगल में ले जाये गये। वहाँ उन्हें जला दिया गया, जिससे उनके प्रेत का भी अस्तित्व न रहे।
इस प्रकार शताब्दियों का अत्याचारी सम्राट धूल में मिल गया और जनता ने उनकी मृत्यु को खून नहीं जन-कल्याण के साधक यज्ञ की आहुति बताया।
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