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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

वही हथिनी और राजकुंवरि अपने पूरे श्रृंगार के साथ ठाकुर साहब के साथ इस समय भी महाराज की अगवानी के लिए हाजिर थी। महाराज ने एक बार एक सुनहरी झूल और चित्र-विचित्र रंगों से सज्जित हथिनी की ओर देखकर मुस्कराकर कहा, "ठाकरां, यही वह तुम्हारी करामाती हथिनी है? और वह पतुरिया कहाँ है?”

ठाकुर ने विनम्र स्वर में तनिक हँसकर कहा, "अन्नदाता, यह हथिनी श्रीमानों की सेवा में उपस्थित है और राजकुंवरि भी दरबार की सेवा में यहीं है!” इसके बाद ठाकुर का इशारा पाकर राजकुंवरि सिर से पैर तक जड़ाऊ पेशवाज पहने महाराज के सामने बिजली-सी आ खड़ी हुई। उसने एक बार धरती तक झुककर महाराज का मुजरा किया और फिर हाथ बान्धकर खड़ी हो गयी।

उस रूप, यौवन और चन्चलता के त्रिकुटे की ओर महाराज देर तक देखते रहे, और फिर एकाएक हँस दिये। ठाकुर ने कहा, "अन्नदाता, हुक्म हो, तो राजकुंवरि एक चीज सुनावे!”

महाराज ने कहा, "हाथी के दाँत पर ही इसे नाचना होगा!” उसी समय चन्दन की एक जड़ाऊ चौकी हथिनी के दाँतों पर लाकर रखी गयी और राजकुंवरि उछलकर उसपर चढ़ गयी। साजिन्दे साफे बाँधकर खड़े हुए। राजकुंवरि ने ठुमकी ली, और एक तान फेंकी। लोगों में सन्नाटा छा गया। कुछ समय को वह समाँ बँधा कि सकते का आलम हो गया। जब संगीत-ध्वनि रुकी और राजकुंवरि ने छम से कूदकर महाराज को मुजरा किया, तो महाराज को एकाएक होश आया। उन्होंने गले से मोतियों की माला उतारकर हँसते-हँसते उसके ऊपर फेंक दी। राजकुंवरि ने फिर एक बार महाराज को मुजरा किया और उछलकर चौकी पर चढ़ गयी। ठाकुर ने महाराज को हथिनी पर सवार होने का संकेत किया। महाराज हथिनी पर सवार हुए। सवारी आगे बढ़ी और राजकुंवरि हथिनी के दाँतों पर रखी छोटी-सी चौकी पर अपनी कलाओं का विस्तार करती हुई चली। महाराज हथिनी और राजकुंवरि दोनों पर मुग्ध हो गये। उन्होंने उनकी उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। उत्सव के बाद महाराज वापस पधारे।

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