अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
|
6 पाठकों को प्रिय 174 पाठक हैं |
बड़ी बेगम...
हथिनी पेट में है
जयपुर की गद्दी पर प्रसिद्ध महाराज जयसिंह विराजमान थे। महाराज की प्रतिभा, विद्या, शौर्य और उदारता दूर-दूर तक प्रसिद्ध थी। परन्तु यह वह समय था, जब राजाओं के अधिकार अपरिमित हुआ करते थे। उनकी आज्ञा ही कानून थी। उस समय तक राजपूती जीवन की अकड़ और बांकापन बिलकुल ही नष्ट हो गया था। राजा लोग निरन्कुश शासन करते, तनिक-सी बात पर तन जाते, और बात ही बात में खून की नदी बह जाया करती थी। राज्य के ठिकानेदार प्रायः भाई-बन्धु, सम्बन्धी या माफीदार होते थे। ये समय पड़ने पर प्राण और सर्वस्व देकर भी राज्य और राजा की रक्षा करते थे। इनकी सेवाओं के आधार पर राज्य में इनका मान और रुतबा होता था। ये सच्चे मन से जहाँ राज्य के लिए आत्माहुति करते थे, वहाँ अपने स्वातंत्र्य, अधिकार और आत्मसम्मान का भी बड़ा ख्याल रखते थे। राजा यदि कभी निरन्कुशता का व्यवहार इनके साथ करता तो ये कभी न झुकते, चाहे ठिकाना मिट्टी में मिल जाता!
जयपुर में थलीट नाम का एक छोटा-सा ठिकाना है। इसकी वार्षिक आय लगभग अस्सी हज़ार है। उस समय के ठाकुर का नाम था गोकुलनाथ सिंह।
दीपावली का उत्सव था और महाराज को खास तौर से उत्सव में सम्मिलित होने को बुलाया गया था। महाराज अपने पूरे लवाजमे सहित ठिकाने में पधारने वाले थे। महाराज के पधारने से उत्सव की शोभा द्विगुण हो गयी थी। अन्य सरदार भी उत्सव में आये थे। हाथी, घोड़ा, रथ, पालकी की भरमार थी। शराब के दौर
चल रहे थे। वेश्याएँ नृत्य कर रही थीं। दूर-दूर से नटनियाँ अपना-अपना करतब दिखाने आयी थीं। बड़े-बड़े फिकैत और पहलवान भी अपनी करतब दिखाने आये थे। महाराज की सवारी आने का समाचार सुनकर ठाकुर साहब उनकी अगवानी को चले। चार कोस उधर ही महाराज की अगवानी की गयी।
ठिकाने की दो चीजें राज्य-भर में प्रसिद्ध थीं-एक तो हथिनी थी, जिसका नाम भीमा था और दूसरी एक वेश्या, जिसका नाम राजकुंवरि था। दोनों चीज़ों की बहुत प्रशंसा थी और महाराज स्वयं उन्हें देखने को उत्सुक थे। हथिनी में करामात यह थी कि उसके दाँतों पर चौकी रखकर राजकुंवरि नाचा करती थी।
|