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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

यौवन के इस उदय-काल में ही यह अनाथ, निरीह और दृष्टिहीन, जीवन के समस्त उद्देश्यों से रहित युवक, उस वृक्ष के नीचे, अपने सजीव हृदय का रस एक-एक बून्द बिखेरकर सुखानुभव कर रहा है। उसे कभी किसीसे माँगते नहीं देखा गया। उस टूटे लोहे के खाली पिन्जरे को, उसकी उस गृहस्थी में स्थिर रखा देखकर मन में अनेक बातें पैदा होती हैं-उस पिन्जरे में कभी अवश्य ही कोई पक्षी रहा होगा। सम्भवत: तोता हो। और उसे वह उसी यत्न से बोलना सिखाता होगा, जैसे वह अपना बाजा बजाता है। उस छोटे-से जीव से उसे कितना मोह होगा, इसका एकमात्र प्रमाण यही है कि वह उस टूटे पिन्जरे को साथ लिये फिरता है। क्या इस आशा से कि फिर कोई वैसा ही पक्षी उसे मिल जाएगा? और, यह भी क्या सम्भव नहीं कि उसका वह स्नेह, जो पक्षी में था, निर्जीव पिन्जरे से निहित हो गया?

चाहे जो हो, वह एक हृदयवान ममतासम्पन्न युवक है। उसका घर नहीं, परिजन नहीं, सगे नहीं, सम्बन्धी नहीं, उसके नेत्रों में दृष्टि नहीं, मस्तिष्क में ज्ञान नहीं! संसार कितना सुन्दर है, यह वह नहीं जानता। लोगों के पास धन है, दौलत है, मोटर है, राज्य है, राजमुकुट है, सेना है, सोना है। शायद, वह नहीं जानता। पृथ्वी पर बड़े-बड़े नरसंहारक शस्त्रास्त्रों का निर्माण हो चुका है। वह सम्भवतः अणु शक्ति के विषय में भी कुछ नहीं जानता। रूस के साम्यवाद और अमेरिका के अर्थवाद, रेडियो, वायुयान आदि बीसवीं शताब्दी की किसी भी विभूति से कदाचित् वह परिचित नहीं। फिर भी वह मनुष्य का बच्चा है, मनुष्य का उसके पास हृदय है, मनुष्य का शरीर है, मनुष्य की-सी ममता है, मनुष्य का-सा ललितकला का ज्ञान भी है। उसकी मूर्खता में एक रस है, करुणा में एक स्वाद है, नेत्रहीन मुख में एक जीवन है। वह कीड़ा-मकोड़ा तो है नहीं, एक चैतन्य पुरुष है! पुरुष के सभी अंग उसमें हैं, परन्तु अविकसित, मूच्छित अथवा मुमूर्ष।

मनुष्य ने न जाने कब से ऐसे बच्चे पैदा करने प्रारम्भ किये हैं। दीन समाज का वह दीन पुरुष है, भाग्यहीन जाति का वह एक भाग्यहीन प्रतिनिधि है, नष्ट नागरिक है।

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