अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
नष्ट नागरिक
वह कम्पनी बाग के एक कोने में, एक पुराने, बड़े-से पेड़ के नीचे अक्सर बैठा रहता है। एक बहुत पुराना, टूटा हुआ टीन का बक्स, एक लोहे का खाली पिन्जरा, एक मिट्टी के रंग की सड़ी हुई गुदड़ी, ये सब जितने करीने से सजाना सम्भव है, उस पेड़ के नीचे जमीन पर, बाग की चहारदीवारी के निकट सजाई हुई रखी रहती हैं। उसके बदन पर कपड़े नहीं हैं, एक चीथड़ा कमर में लपेटा हुआ है, फिर उस टीन के बक्स में क्या होगा, यह नहीं कहा जा सकता। वह कभी खास अवसरों पर ही पहनना चाहता होगा। परन्तु इन सब सामानों के अलावा, उसके पास जो खास चीज़ है, वह एक जापानी बैंजो बाजा है। नित्य प्रात:काल घर से आते समय मैं देखता हूँ, वह ऊपर आकाश की ओर मुख उठाकर, तन्मय भाव से उस बाजे पर गत बजाता है, और अपने-आपको ही सुनाने योग्य कुछ गुनगुनाता भी है। निस्सन्देह उसका कण्ठ-स्वर अच्छा नहीं, बाजे से वह मिलता भी नहीं, इसीसे कदाचित् वह उस भाँति गाता है।
वह नवयुवक है, और अंधा है। जिस पेड़ के नीचे उसने डेरा डाला है, उसपर दिन-भर सैकड़ों चिमगादड़ लटके रहते हैं। आने-जाने वाले उसे आकाश की ओर मुँह उठाये, सड़क की ओर पीठ किये, आम रास्ते से हटकर गुनगुनाते और तन्मय होकर बाजा बजाते देखकर, अनायास ही कह सकते हैं कि वह यह बाजा किसीको सुनाकर, आकर्षित करके, पैसा या भीख माँगने के लिए नहीं बजा रहा है। वह उस वृक्ष पर रहने वाले अरसिक चिमगादड़ों को और इन चिमगादड़ों के निर्माता उस परमेश्वर को भी बाजा नहीं सुनाता है। उसकी न तो इतनी उच्च आत्मा ही प्रतीत होती है, न वह इतना मूढ़ ही है-तब वह इतना तन्मय होकर किसलिए गा रहा है? धुन में मस्त होकर किसलिए बाजा बजा रहा है?
कल आते हुए देखा, वह अपना बाजा सामने धरे, चुपचाप, सड़क की ओर पीठ किये बैठा था। एक बालक टीन का डब्बा लिये, उसके पास खड़ा, खूब खुश हो-होकर उसे खंजरी की भाँति बजा रहा था। परसों देखा, कोई उसका मित्र लड़का आया है, उसने उसे उदारतापूर्वक अपना बाजा बजाने की अनुमति दे दी है। बालक बाजा बजाना नहीं जानता, किन्तु वह धैर्यपूर्वक, आकाश में अपनी अन्धी दृष्टि फेंकता हुआ, उसका नीरस, अस्त-व्यस्त बजाना सुन रहा है। उसने अपने मित्र को जो आनन्द-दान, थोड़ी देर बाजा बजाने की अनुमति देकर दिया है, उससे जो आत्मतुष्टि उसे हुई है, वह उसके असुन्दर, अन्धे मुख पर प्रत्यक्ष दिखाई पड़ती है। वह एक महान ज्ञानी-गुरु की भाँति गम्भीर होकर, उस अनाड़ी बालक की उंगलियों से झंकृत ध्वनि पर, अपने सिद्ध अभ्यास को तोल-सा रहा हे। वह सोच रहा है, कहाँ वह और कहाँ यह ! उसके होंठों में हास्य की एक तिरछी रेखा खिंच गयी है।
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