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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

चार मास बाद युवती ने जेल से लौटकर सुना कि रामनाथ का यश दिग्दिगंत में व्याप्त है। वह इस समय जेल में है। इन चार मासों में उसने वीरता की हद कर दी है। वह किसी तरह न रुक सकी। जेल में मिलने गयी। रामनाथ जेल के अस्पताल में विषम ज्वर में भुन रहा था।

"कैसे हो?”

"ओह तुम आ गयीं, देखो कैसा अच्छा हूँ।”

"मुझे क्षमा करो, मैंने तुम्हारा अपमान किया था!”

"तुमने मेरे मान की रक्षा किस तरह की है, यह कहने की बात नहीं!"

"अब?"

"मैं मरूंगा नहीं, आकर फिर कर्त्तव्य-पालन करूंगा! तब प्रिये, तुम मेरे स्थान पर !"

"पर में व्याख्यान नहीं दे सकती।”

"उसकी ज़रूरत नहीं। तुम्हारे मौन भाषण में वह बल है कि बड़े-बड़े वाग्मियों की मर्यादा की रक्षा हो सकती है।”

"जी कैसा है?”

"मैं आशा करती हूँ, शीघ्र अच्छे हो जाओगे!” देखेंगा!”

"और बाहर आकर, अपनी सिंह-वाहिनी को युद्ध करते, अपनी आँखों से देखूँगा!"

"मुझे क्या आज्ञा है?”

"यही कि जब-जब मैं कायर बनूँ, अपना प्यार और हृदय देकर मुझे वीर बनाये रखना!”

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