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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

बाबा जी जयपुर आये। राजकुंवरि से मिले और कहा, "बाई, हमने और तुमने दोनों ही ने ठिकाने का नमक खाया है। ठाकुर तो बात पर जूझ मरे, अब लाल जी का बन्दोबस्त होना चाहिए। उनकी मातमी होनी चाहिए!"

दोनों ने परामर्श किया। बाबा जी बड़े भारी तबलची थे। राजकुंवरि ने हँसकर

कहा, "बाबा जी, लाल जी की मातमी तो हो जाएगी, पर आपको तबलची बनना पड़ेगा?"

बाबा जी ने अपनी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरा और हँसकर कहा, "राजकुंवरि, वह भी मैं बनूँगा!”

महाराज की वर्षगांठ थी। राजकुंवरि सोलहों श्रृंगार किये उपस्थित थी। पर गाने का रंग ही न जमता था। महाराज मदिरा में लाल हो रहे थे। उन्होंने कहा, "राज, क्या बात है? उड़ी ही जाती हो, रंग क्यों नहीं जमता ?”

राजकुंवरि ने कहा, “अन्नदाता, कसूर माफ ! बिना अच्छा तबलची मिले, गाने का कभी रंग नहीं जमता। थलीट का-सा तबलची यहाँ कहाँ?”

महाराज ने कहा, "तब उसे बुलाया जाए।”

राजकुंवरि ने कहा, “पर अन्नदाता, ठाकुर उसे सदैव मुंह माँगा इनाम देते थे। बिना महाराज से ऐसा इनाम पाये, वह न आवेगा!”

महाराज ने कहा, "उसे यहाँ भी मुँह माँगा इनाम मिलेगा। बुलाया जाए।”

बाबा जी तबला लेकर बैठे। कुछ ही देर में वह समाँ बँधा कि लोग झूम गये। बाबा जी और राजकुंवरि ने अपनी कलाओं को खत्म कर दिया था।

महाराज ने प्रसन्न होकर कहा, “माँग, क्या माँगता है ?”

बाबा जी ने हाथ जोड़कर कहा, "अन्नदाता, थलीट के लाल जी की मातमी कराई जाए।” महाराज का मुँह लाल हो गया। बाबा जी ने आगे बढ़कर कहा, "महाराज, मैं तबलची नहीं हूँ। दरबार को खुश करने और लाल जी की मातमी के लिए ही मैंने यह काम भी किया। ठाकुर बात के धनी थे, बात पर उन्होंने जान दी, अब आप लाल जी को क्षमा प्रदान करें।” राजकुंवरि ने भी महाराज से बहुत-बहुत अनुरोध किया। महाराज प्रसन्न हुए, और मातमी का हुक्म दिया। लाल जी धूमधाम से ठिकाने के स्वामी हुए।

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