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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

नवयुवक ठाकुर पर यौवन और अधिकार का मद सवार हुआ। लफंगों और खुशामदियों ने उसकी कच्ची बुद्धि को मनमाने ढंग पर लगाया। वृद्ध कामदार की शिक्षाएँ उन्हें अब विष के समान प्रतीत होने लगीं। वह उनसे विरक्त और

विपरीत आचरण करने लगे। धीरे-धीरे बाबा जी का ड्रयोढ़ियों में आना-जाना भी बहुत कम हो गया। बाबा जी घर पर ही कचहरी किया करते थे। अन्त में लोगों

ने ठाकुर के ऐसे कान भरे कि युवक ठाकुर ने बाबा जी को मरवा देने का संकल्प कर लिया और हुक्म भी दे दिया।

जब बाबा जी के पास ड्योढ़ियों से बुलावा पहुँचा, तो वह सब कुछ समझ गये। उन्होंने परिजनों के सब लोगों को बुलाया। उनसे मिले। बहुतों को कुछ दिया भी। इसके बाद पीले वस्त्र पहने और मिठाई खाकर किले की ओर चले। घर के लोग कुछ भी भेद न जानते थे, वे कुछ भी न समझ सके।

किले में आकर सुना कि लाल जी झरोखे में हैं। बाबा जी ने वहीं पहुँचकर ठाकुर को मुजरा किया और कहा, "क्या हुक्म है?”

नवयुवक ठाकुर अवाक् रह गये। कुछ देर वह नीची दृष्टि किये बैठे रहे। उनके मुँह से बोली न निकली, न वह बाबा जी की ओर देख ही सके। यह देखकर बाबा जी हँस दिये।

लाल जी खड़े हो गये। उन्होंने धीमे स्वर में कहा, "मैंने आपको मारने की आज्ञा दी है, जो इच्छा हो, कहिये।”

बाबा जी ने कहा, "ठिकाने का पूरा-पूरा ख्याल रखना, मेरे सब कागज़ात ठीक-ठाक हैं, उन्हें सम्भाल लेना।”

लाल जी की आँखों में आँसू भर आये। उन्होंने कहा, "यह झरोखा तो आप देखते ही हैं।” वह रोने लगे।

बाबा साहब ने एक क्षण आकाश की ओर देखा और झरोखे से कुद गये।

बिजली के समान यह समाचार ठिकाने में फैल गया। झुण्ड के झुण्ड लोग इस वीर एवं साहसी वृद्ध के अन्तिम दर्शन को आये। घटना आकस्मिक कहकर प्रसिद्ध की गयी, पर असली भेद छिपा नहीं रहा।

धूमधाम से अर्थी उठायी गयी और लाल जी भी नंगे पैर श्मशान तक गये। राज्य में इस घटना का समाचार पहुँचा, और नवयुवक ठाकुर शीघ्र ही गद्दी से च्युत कर दिये गये। आज भी थलोट के वृद्ध पुरुष इस पवित्र त्यागी राजसेवक के साहस की वीरता की गाथा गाते हैं।

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