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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

 

तीन बागी

आठ बजे शाम को एक सैनिक अफसर दो सिपाहियों के साथ बैरक में आया। उसके हाथ में एक कागज़ था, जिसको पढ़ते हुए उसने संतरी से पूछा, "इन तीनों के नाम क्या है?"

"जनरल शाहनवाज, जनरल ढिल्लन और लेफ्टिनेण्ट सहगल।" संतरी ने संक्षेप में उत्तर दिया।

अफसर ने अपना चश्मा चढ़ा लिया और हाथ के कागज की गौर से पढ़ा। वह भुनभुनाया, "जनरल शाहनवाज-हाँ, यह है तो।"

उसने कागज़ पर अपनी मोटी-भद्दी उँगली रखी, फिर उससे भी अधिक भद्दी आवाज़ में जनरल शाहनवाज को लक्ष्य करके कहा, "तुमको कल सुबह गोली से मारने का हुक्म हुआ है।”

उसने फिर चश्मे से घूर-घूरकर नामों की सूची देखी और फिर कहा, "बाकी इन दोनों को भी यही सजा है।”

"यह नहीं हो सकता।” लेफ्टिनेण्ट सहगल ने गुस्से-भरी आवाज में कहा, "आपका मतलब मुझसे नहीं हो सकता।”

अफसर ने अचकचाकर उसकी ओर देखा और कुछ रुकते हुए पूछा, "तुम्हारा क्या नाम है?”

"लेफ्टिनेण्ट सहगल” अफसर ने कागज़ पर नज़र डाली। फिर कहा, "तो तुम्हारा नाम इस सूची में क्यों दर्ज है?”

"लेकिन मैंने किया क्या है, यह भी तो मालूम हो!”

अफसर ने गर्दन मोड़कर अपने साथी सिपाहियों की ओर देखा और फिर लेफ्टिनेण्ट सहगल की ओर देखकर कहा, "क्या तुम लोग बागी नहीं हो?"

"जी नहीं, हम लोगों में कोई बागी नहीं है।”

उसने अचरज से ठुड़ी पर हाथ रखा और कहा, "मुझे तो यही बताया गया था कि यहाँ तीन बागी हैं। खैर, कहीं हों, मुझे ढूँढ़ने की क्या गरज? तुम लोगों की पादरी की जरूरत तो नहीं है?”

तीनों कैदियों ने उसके सवाल का जवाब देना व्यर्थ समझा, और वह कुछ बड़बड़ाता हुआ भारी-भारी कदम रखता हुआ चला गया।

जनरल शाहनवाज ने आँख उठाकर लेफिटनेण्ट सहगल की ओर देखा। गोरे और सुकुमार चेहरे पर अभी मसें भीगती थीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था-अभी जवानी ने उसे पूरी तौर पर छुआ भी नहीं है। उसके मुँह से बोली नहीं निकल रही थी। उसका चेहरा और हाथ कागज़ के समान सफेद हो चुके थे। वह जमीन पर बैठ गया था और थरथरायी आँखों से फर्श की ओर देख रहा था। उसे देखने से ही मन में उदासी पैदा होती थी।

जनरल शाहनवाज की ओर एकाएक देखकर उसने कहा, "क्या तुमने कभी किसीको गोली मारी है?”

जनरल ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। दूसरी ओर दीवार पर जो लैम्प की गोल-गोल परछाई पड़ रही थी, वह उसकी ओर देखने लगा।

परन्तु लेफ्टिनेण्ट सहगल कहता ही चला गया। उसने कहा, "जनाब, अगस्त से लेकर अब तक मैंने छः आदमियों को गोलियों का निशाना बनाया है।”

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