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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

दोनों साथियों ने समझ लिया कि उनका तरुण साथी बनावटी लापरवाही दिखा रहा है और अपने को भुलावे में डालना चाहता है।

मेजर जनरल ढिल्लन अब तक चुपचाप दीवार के सहारे कमर लगाये बैठे थे। एक बार उन्होंने जनरल शाहनवाज की ओर देखा, फिर कहा, "यारो, अभी से सिर खपाने से क्या फायदा! सोचने-समझने को सारी रात पड़ी है। अच्छा हो तब तक एक-एक झपकी ले ली जाय। इससे तबीयत कुछ ताजी हो जायेगी।”

जनरल शाहनवाज कुछ नहीं बोले। उसी भाँति लैम्प की परछाई को ताकते बैठे रहे। लेकिन मेजर जनरल ढिल्लन ने देखा-उनके नवयुवक साथी का चेहरा एकदम जर्द हो चुका था।

दरवाज़ा खुला और दो संतरी भीतर आये। उनके पीछे-पीछे एक लम्बे चेहरे का आदमी था। यह एक लम्बा-भूरा कोट पहने था। उसने मित्र-भाव से कैदियों से

मिलाने को हाथ बढ़ाया और यथासाध्य नर्म आवाज़ में कहा, "मैं डाक्टर हूँ।” फिर कुछ रुककर भलमनसाहत से कहा, "मुझे हुक्म है कि हर तरह से जो कुछ भी मदद आपकी हो सके, करूं।”

जनरल शाहनवाज ने एक बार ऑख उठाकर उसकी ओर देख-भर लिया। लेफ्टिनेण्ट सहगल हिला-डुला भी नहीं। लेकिन मेजर जनरल ढिल्लन ने कहा, "आप यहाँ कर ही क्या सकते हैं?"

"मैं यही कर सकता हूँ कि आखिरी दम तक आपको कम से कम तकलीफ हो, ऐसी कोशिश करूं।”

जनरल शाहनवाज ने एकाएक सिर उठाकर कुछ चिढ़कर कहा, "लेकिन आपको सिर्फ हमारी ही इतनी फिक्र क्यों है और भी तो लोग हैं?”

"लेकिन मुझे यहीं भेजा गया है।” उसने नर्मी से कहा। फिर उसने जल्दी से पूछा, "शायद आप लोग सिगरेट पीना पसन्द करेंगे।”

उसने सिगरेट और सिगार निकालकर देना चाहा। परन्तु शाहनवाज ने इन्कार कर दिया। ढिल्लन ने मुँह फेर लिया और सहगल ने उधर देखा ही नहीं।

एकाएक जनरल शाहनवाज ने रुखाई से कहा, "मैं आपकी असलियत को के साथ उस दिन देखा था, जब हमें गिरफ्तार किया गया था।”

उन्होंने उसकी ओर से मुँह फेर लिया और अपनी नज़र लैम्प की परछाई पर जमा दी। उसके दोनों साथी भी उसकी ओर से उदासीन होकर बैठ गये। तीनों न जाने किन-किन विचारों में डूब गये।

उस आदमी ने अपने हाथ हिलाये, सिगरेट जलायी और चुपचाप धुआँ उड़ाता हुआ बाहर चला गया।

प्रातः की सूर्य-किरणें फैल चुकी थीं। तीनों बागी गहरी नींद सोकर अभी उठे ही थे कि संतरी ने आकर उन्हें सैल्यूट किया और एक ओर खड़ा हो गया। मेजर ढिल्लन ने कड़ककर पूछा, "क्या बात है?”

"सर, जेलर साहब ने आपको सलाम बोला है।”

"जेलर से कहो, यहीं आकर मुलाकात करें।”

संतरी सैल्यूट करके चला गया। ढिल्लन ने कहा, "रेस्कल।”

जेलर ने वहीं पहँचकर उनसे हाथ मिलाया और एक परवाना पढ़कर सुनाते हुए कहा, "चाय-नाश्ता कर लीजिये-उसके बाद तैयार हो जाइये। आप सबको ग्यारह बजे तक हेड क्वार्टर पहुँचकर भारत के लिए जहाज़ पकड़ना है। विशिंग गुडलक।”

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