अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
पटेल ने बीच में ही बात काटकर कहा, "पाकिस्तान को छोड़कर शेष सम्पूर्ण भारत के प्रदेश हिन्द सरकार के संरक्षण में स्वभावत: ही हैं। हिन्द सरकार देश के पृथक्-पृथक् टुकड़े होना सहन न करेगी, सर लाकहार्ट, आप काश्मीर पर तुरन्त सेना भेज दीजिए।”
सर लाकहार्ट ने खड़े होकर कहा, "यह खतरनाक योजना है। मैं होम मिनिस्टर को बताना चाहता हूँ, यदि हम काश्मीर में सेना भेजते हैं तो सब तैयारियों में हमें एक मास लग जाएगा। और सेना को मोर्चे पर पहुँचते-पहुँचते और पन्द्रह दिन। फिर यदि पाकिस्तान ने प्रतिक्रिया की तो कहा नहीं जा सकता कि कितनी सेना वहाँ खपानी पड़ेगी। इसके सिवा सर्दी आ रही है। शीतकाल में वहाँ हम अपनी सेना को न कुमुक भेज सकेंगे न रसद। घाटियों में बर्फ पड़ जाने से यातायात की भारी असुविधा हो जाएगी। फल यह होगा कि हमारी सेना वहाँ घिरकर नष्ट हो जाएगी। इन सब बातों पर आप लोग विचार कर लें। मैं आशा करता हूँ कि गवर्नर जनरल और माननीय मन्त्रीगण मुझसे सहमत होंगे।”
माउण्टबेटन ने कहा, "मैं सहमत हूँ। अभी तो यह भी स्पष्ट नहीं हुआ कि यह आक्रमण इस योग्य है भी या नहीं कि इसके विरुद्ध सेना भेजी जाए। फिर हमें पाकिस्तान से मोर्चा लेने की उलझनों में नहीं पड़ना चाहिए। मैं तो यू.एन.ओ. में यह प्रश्न भेजना पसन्द करता हूँ। हाँ, भारत की सीमा की रक्षा अवश्य होनी चाहिए। उसके लिए आशा करता हूँ कि सर लाकहार्ट ने समुचित व्यवस्था कर ही दी होगी।”
सर लाकहार्ट ने छाती पर हाथ रखकर कहा, “बिलकुल समुचित माई लार्ड, आप विश्वास रखें कि भारतीय सीमाएँ सर्वथा सुरक्षित हैं।”
पटेल ने फिर गरजकर कहा, "हम लोग भारतीय सीमाओं की सुरक्षा पर बातचीत नहीं कर रहे बेटन, हम काश्मीर पर किये गये आक्रमण को रोकने पर विचार कर रहे हैं। उसके लिए सेना भेजना अत्यन्त आवश्यक है। सर लाकहार्ट, आप तुरन्त सेना भेज दीजिए।”
"यदि ऐसा ही है तो जो सेना पहले भेजी जा चुकी है, वह अभी यथेष्ट है, मैं उसीको नये आदेश भेज देता हूँ।”
पटेल ने गम्भीर दृष्टि से मेजर जनरल करिअप्पा की ओर देखकर कहा, "करिअप्पा, मैं चाहता हूँ कि तुम काश्मीर मोर्चे पर लाकहार्ट का नया सन्देश लेकर जाऊंनी।”
"मुझे दुख है सरदार, मैं ऐसा नहीं कर सकता।”
नेहरू का चेहरा लाल हो गया। उन्होंने कहा, "क्या कारण है कि आप इन्कार करते हैं?”
सर लाकहार्ट ने कहा, "मैं हुक्म देता हूँ मेजर जनरल करिअप्पा, कि आप तुरन्त काश्मीर के मोर्चे पर जाकर जनरल ग्रेसी की अधीनता में कार्य करें।”
"किन्तु मैं इन्कार करता हूँ।”
"क्या तुम मेजर जनरल, अपने अफसर के हुक्म को मानने से इन्कार करते हो?”
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