अतिरिक्त >> सत्य और यथार्थ सत्य और यथार्थजे. कृष्णमूर्ति
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सत्य और यथार्थ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘‘सत्य और वास्तविकता के बीच सम्बन्ध क्या है ? वास्तविकता, जैसा कि हमने कहा था, वे सब वस्तुएँ हैं जिन्हें विचार ने जमा किया है। वास्तविकता शब्द का मूल अर्थ वस्तुएँ अथवा वस्तु है। और वस्तुओं के संसार में रहते हुए, जो कि वास्तविकता है, हम एक ऐसे संसार से सम्बन्ध कायम रखना चाहते हैं जो अ-वस्तु-है, ‘नो थिंग’ है-जो कि असम्भव है।
हम यह कह रहे हैं कि चेतना, अपनी समस्त अन्तर्वस्तु सहित, समय कि वह हलचल है। इस हलचल में ही सारे मनुष्य प्राणी फँसे हैं। और जब वह मर जाते हैं, तब भी वह हलचल, वह गति जारी रहती है। ऐसा ही है; यह एक तथ्य है। और वह मनुष्य जो इसकी सफलता को देख लेता है। यानी इस भय, इस सुखाकांक्षा और इस विपुल दुःख-दर्द का, जो उसने खुद पर लादा है तथा दूसरों के लिए पैदा किया है, इस सारी चीज़ का, और इस ‘स्व’, इस ‘मैं’ की प्रकृति एवं संरचना का, इस सबका संपूर्ण बोध उसे यथार्थताः होता है तब वह उस प्रवाह से, उस धारा से बाहर होता है। और वही चेतना में आर-पार का क्षण है... चेतना में उत्परिवर्तन, ‘म्यूटेशन’, समय का अंत है, जो कि उस ‘मैं’ का अन्त है जिसका निर्माण समय के ज़रिये किया गया है। क्या यह उत्परिवर्तन वस्तुतः घटित हो सकता है ? या फिर, यह भी अन्य सिद्धान्तों कि भाँति एक सिद्धान्त मात्र है ?
क्या कोई मनुष्य या आप, सचमुच इसे कर सकते है ?’’
संवाद, वार्ताओं एवं प्रश्नोत्तर के माध्यम से जीवन की समग्रता पर जे. कृष्णमूर्ति के संग-साथ अतुल्य विमर्श...
हम यह कह रहे हैं कि चेतना, अपनी समस्त अन्तर्वस्तु सहित, समय कि वह हलचल है। इस हलचल में ही सारे मनुष्य प्राणी फँसे हैं। और जब वह मर जाते हैं, तब भी वह हलचल, वह गति जारी रहती है। ऐसा ही है; यह एक तथ्य है। और वह मनुष्य जो इसकी सफलता को देख लेता है। यानी इस भय, इस सुखाकांक्षा और इस विपुल दुःख-दर्द का, जो उसने खुद पर लादा है तथा दूसरों के लिए पैदा किया है, इस सारी चीज़ का, और इस ‘स्व’, इस ‘मैं’ की प्रकृति एवं संरचना का, इस सबका संपूर्ण बोध उसे यथार्थताः होता है तब वह उस प्रवाह से, उस धारा से बाहर होता है। और वही चेतना में आर-पार का क्षण है... चेतना में उत्परिवर्तन, ‘म्यूटेशन’, समय का अंत है, जो कि उस ‘मैं’ का अन्त है जिसका निर्माण समय के ज़रिये किया गया है। क्या यह उत्परिवर्तन वस्तुतः घटित हो सकता है ? या फिर, यह भी अन्य सिद्धान्तों कि भाँति एक सिद्धान्त मात्र है ?
क्या कोई मनुष्य या आप, सचमुच इसे कर सकते है ?’’
संवाद, वार्ताओं एवं प्रश्नोत्तर के माध्यम से जीवन की समग्रता पर जे. कृष्णमूर्ति के संग-साथ अतुल्य विमर्श...
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