गीता प्रेस, गोरखपुर >> जानकी मंगल जानकी मंगलहनुमानप्रसाद पोद्दार
|
3 पाठकों को प्रिय 313 पाठक हैं |
जानकी मंगल सरल भावार्थ सहित....
।। श्रीहरि: ।।
श्रीजानकी-मंगल
मंगलाचरण
गुरु गनपति गिरिजापति गौरि गिरापति।
सारद सेष सुकबि श्रुति संत सरल मति।।1।।
हाथ जोरि करि बिनय सबहि सिर नावौं।
सिय रघुबीर बिबाहु जथामति गावौं।।2।।
सारद सेष सुकबि श्रुति संत सरल मति।।1।।
हाथ जोरि करि बिनय सबहि सिर नावौं।
सिय रघुबीर बिबाहु जथामति गावौं।।2।।
गुरु, गणपति (गणेशजी), शिवजी, पार्वतीजी, वाणी के स्वामी बृहस्पति अथवा विष्णुभगवान्, शारदा, द्वेष, सुकवि, वेद और सरलमति संत-सबको हाथ जोड़कर विनयपूर्वक सिर नवाता हूँ और अपनी बुद्धि के अनुसार श्रीरामचन्द्रजी और जानकीजी के विवाहोत्सव का गान करता हूँ।।1-2।।
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book