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गीता प्रेस, गोरखपुर >> जानकी मंगल

जानकी मंगल

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 908
आईएसबीएन :81-293-0503-8

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जानकी मंगल सरल भावार्थ सहित....

।। श्रीहरि: ।।

 

श्रीजानकी-मंगल
मंगलाचरण

 

गुरु गनपति गिरिजापति गौरि गिरापति।
सारद सेष सुकबि श्रुति संत सरल मति।।1।।
हाथ जोरि करि बिनय सबहि सिर नावौं।
सिय रघुबीर बिबाहु जथामति गावौं।।2।।

 

गुरु, गणपति (गणेशजी), शिवजी, पार्वतीजी, वाणी के स्वामी बृहस्पति अथवा विष्णुभगवान्, शारदा, द्वेष, सुकवि, वेद और सरलमति संत-सबको हाथ जोड़कर विनयपूर्वक सिर नवाता हूँ और अपनी बुद्धि के अनुसार श्रीरामचन्द्रजी और जानकीजी के विवाहोत्सव का गान करता हूँ।।1-2।।

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