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गीता प्रेस, गोरखपुर >> जानकी मंगल

जानकी मंगल

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 908
आईएसबीएन :81-293-0503-8

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जानकी मंगल सरल भावार्थ सहित....

श्रीकिशोरीजीके द्वादश नाम-वर्णन

 

मैथिली जानकी सीता वैदेही जनकात्मजा।
कृपापीयूषजलधिः प्रियाह रामवल्लभा॥
सुनयनासुता वीर्यशुल्काऽयोनी रसौद्भवा।
द्वादशैतानि नामानि :वाञ्छितार्थप्रदानि हि॥

(श्रीजानकी-चरितामृतम्)

१-मैथिली : श्रीमिथिवंशमें सर्वोत्कृष्टरूपसे विराजनेवाली श्रीसीरध्वजराजदुलारीजी।
२-जानकी : श्रीजनकजी महाराजके भावकी पूर्तिके लिये उनकी यज्ञवेदीसे प्रकट होनेवाली।
३-सीता : आश्रितोंके हृदयसे सम्पूर्ण दुःखोंकी मूल दुर्भावना को नष्ट करके सद्भावनाका विस्तार करनेवाली।
४-वैदेही : भगवान् श्रीरामजीके चिन्तनकी तल्लीनतासे देहकी सुधि भूल जानेवाली शक्तियों में सर्वोत्तम।
५-जनकात्मजा : श्रीसीरध्वजमहाराज नामके श्रीजनकजी महाराजके पुत्री-भावको स्वीकार करनेवाली।
६-कृपापीयूषजलधि : समुद्रके समान अथाह एवं अमृतके सदृश असम्भवको सम्भव कर देनेवाली कृपासे युक्त।
७-प्रियाह : जो प्यारेके योग्य और प्यारे श्रीरामभद्रजू जिनके योग्य हैं।
८-रामवल्लभी : जो श्रीराघवेन्द्र सरकारकी परम प्यारी हैं।
९-सुनयनासुता : श्रीसुनयना महारानीके वात्सल्यभाव-जनित सुखका भलीभाँति विस्तार करनेवाली।
१०-वीर्यशुल्का : शिवधनुष तोड़नेकी शक्तिरूपी न्योछावर ही वधू रूपमें जिनकी प्राप्तिका साधन है अर्थात् जो भगवान् शिवजीके धनुष तोड़नेकी शक्तिरूपी न्योछावर अर्पण कर सकेगा, उसीके साथ जिनका विवाह होगा।
११-अयोनिः : किसी कारणविशेषसे प्रकट न होकर केवल भक्तोंका भाव पूर्ण करनेके लिये अपनी इच्छानुसार प्रकट होनेवाली।
१२-रसोद्भवा : जन्मसे ही अपनी अलौकिकता व्यक्त करनेके लिये किसी प्राकृत शरीरसे प्रकट न होकर पृथ्वीसे प्रकट होनेवाली।

श्रीललीजीके ये बारह नाम मनोवांछित (मनचाही) सिद्धिको प्रदान करनेवाले हैं।

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