लोगों की राय
गीता प्रेस, गोरखपुर >>
जानकी मंगल
जानकी मंगल
प्रकाशक :
गीताप्रेस गोरखपुर |
प्रकाशित वर्ष : 2006 |
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
|
पुस्तक क्रमांक : 908
|
आईएसबीएन :81-293-0503-8 |
|
3 पाठकों को प्रिय
313 पाठक हैं
|
जानकी मंगल सरल भावार्थ सहित....
श्रीजानकीजीकी स्तुति
भई प्रगट कुमारी भूमि-विदारी जन हितकारी भयहारी।
अतुलित छबि भारी मुनि-मनहारी जनकदुलारी सुकुमारी॥
सुन्दर सिंहासन तेहिं पर आसन कोटि हुताशन द्युतिकारी।
सिर छत्र बिराजै सखि संग आजै निज-निज कारज करधारी॥
सुर सिद्ध सुजाना हनै निशाना चढ़े बिमाना समुदाई।
बरषहिं बहुफूला मंगल मूला अनुकूला सिय गुन गाई॥
देखहिं सब ठाढ़े लोचन गाढ़े सुख बाढ़ उर अधिकाई।
अस्तुति मुनि रहीं आनन्द भरहीं पायन्ह परहीं हरषाई॥
ऋषि नारद आये नाम सुनाये सुनि सुख पाये नृप ज्ञानी।
सीता अस नामा पूरन कामा सब सुखधामा गुन खानी॥
सिय सन मुनिराई विनय सुनाई समय सुहाई मृदुबानी।
लालनि तन लीजै चरित सुकीजै यह सुख दीजै नृपरानी॥
सुनि मुनिवर बानी सिय मुसकानी लीला ठानी सुखदाई।
सोवत जनु जागीं रोवन लागीं नृप बड़भागी उर लाई॥
दम्पति अनुरागेउ प्रेम सुपागेउ यह सुख लायउँ मनलाई।
अस्तुति सिय केरी प्रेमलतेरी बरनि सुचेरी सिर नाई॥
दो०-निज इच्छा मखभूमि ते प्रगट भईं सिय आय।
चरित किये पावन परम बरधन मोद निकाय॥
।।श्रीजनकनन्दिनीकी जय।
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai