गीता प्रेस, गोरखपुर >> जानकी मंगल जानकी मंगलहनुमानप्रसाद पोद्दार
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जानकी मंगल सरल भावार्थ सहित....
बधुन सहित सुत चारिउ मातु निहारहिं।
बारहिं बार आरती मुदित उतारहिं॥१८५॥
करहिं निछावरि छिनु छिनु मंगल मुद भरीं।
दुलह दुलहिनिन्ह देखि प्रेम पयनिधि परीं ॥१८६॥
बारहिं बार आरती मुदित उतारहिं॥१८५॥
करहिं निछावरि छिनु छिनु मंगल मुद भरीं।
दुलह दुलहिनिन्ह देखि प्रेम पयनिधि परीं ॥१८६॥
माताएँ वधुओंके सहित चारों पुत्रोंको निहारती हैं और प्रसन्न होकर बारंबार उनकी आरती उतारती हैं॥१८५॥ वे क्षण-क्षणमें मंगल और आनन्दसे भरकर उनकी निछावर करती हैं और दूल्हा-दुलहिनोंको देखकर प्रेमके समुद्रमें डूब गयी हैं॥१८६।।
देत पावड़े अरघ चलीं लै सादर।
उमगि चलेउ आनंद भुवन भुईं बादर॥१८७॥
नारि उहा उघारि दुलहिनिन्ह देखहिं।
नैन लाहु लहि जनम सफल करि लेखहिं॥१८८॥
उमगि चलेउ आनंद भुवन भुईं बादर॥१८७॥
नारि उहा उघारि दुलहिनिन्ह देखहिं।
नैन लाहु लहि जनम सफल करि लेखहिं॥१८८॥
वे पावड़े बिछाती और अर्घ्य देती हुई उन्हें आदरपूर्वक लिवा चलीं। उस समय समस्त लोकोंमें तथा पृथ्वी एवं आकाशमें आनन्द उमड़ चला। स्त्रियाँ ओहार अर्थात् पर्दा उठाकर दुलहिनियोंको देखती हैं और नेत्रोंका लाभ पाकर जन्मको सफल समझती हैं॥१८७-१८८॥
भवन आनि सनमानि सकल मंगल किए।
बसन कनक मनि धेनु दान बिप्रन्ह दिए॥१८९॥
जाचक कीन्ह निहाल असीसहिं जहँ तहँ।
पूजे देव पितर सब राम उदय कहँ॥१९०॥
बसन कनक मनि धेनु दान बिप्रन्ह दिए॥१८९॥
जाचक कीन्ह निहाल असीसहिं जहँ तहँ।
पूजे देव पितर सब राम उदय कहँ॥१९०॥
उन्हें सम्मानपूर्वक राजमहलमें लाकर सब प्रकारके मंगलकृत्य किये और ब्राह्मणोंको वस्त्र, सोना, मणि और गौएँ दान कीं ॥१८९॥ याचकोंको (मनमाना दान देकर) निहाल कर दिया। वे जहाँ-तहाँ आशीर्वाद देते हैं। और श्रीरामचन्द्रजीकी उन्नतिके लिये देवता और पितृगण सभीका पूजन किया गया।।१९०॥
नेगचार करि दीन्ह सबहि पहिरावनि।
समधी सकल सुआसिनि गुरतिय पावनि॥१९१॥
जोरीं चारि निहारि असीसत निकसहिं।
मनहुँ कुमुद बिधु-उदये मुदित मन बिकसहिं॥१९२॥
समधी सकल सुआसिनि गुरतिय पावनि॥१९१॥
जोरीं चारि निहारि असीसत निकसहिं।
मनहुँ कुमुद बिधु-उदये मुदित मन बिकसहिं॥१९२॥
रीतिके अनुसार नेग-चार करके अपने सम्बन्धियोंको, सब सुवासिनियोंको, अपनेसे बड़ी स्त्रियोंको और पौनियों (अपने आश्रित निम्न जातिकी स्त्रियों)-को पहिरावनी दी ॥१९१॥ वे सब [वर-दुलहिनोंकी] चारों जोड़ियोंको आशीर्वाद देती हुई निकलती हैं और मनमें ऐसी प्रसन्न होती हैं जैसे चन्द्रमाके उदय होनेपर कुमुदिनियाँ आनन्दसे खिल उठती हैं।।१९२॥
दो०-बिकसहिं कुमुद जिमि देखि बिधु भई अवध सुख सोभामई।
एहि जुगुति राम बिबाह गावहिं सकल कबि कीरति नई॥
उपबीत ब्याह उछाह जे सिय राम मंगल गावहीं।
तुलसी सकल कल्यान ते नर नारि अनुदिन पावहीं ॥२४॥
एहि जुगुति राम बिबाह गावहिं सकल कबि कीरति नई॥
उपबीत ब्याह उछाह जे सिय राम मंगल गावहीं।
तुलसी सकल कल्यान ते नर नारि अनुदिन पावहीं ॥२४॥
जैसे चन्द्रमाको देखकर कुमुदिनियाँ खिल उठती हैं वैसे ही सब स्त्रियाँ आनन्दित हैं। उस समय अयोध्या सुखी और शोभामयी हो रही हैं। इस प्रकार श्रीरामचन्द्रजीके विवाहकी सुन्दर नवीन कीर्तिको कवि लोग गाते हैं। जो लोग भगवान् के यज्ञोपवीत और श्रीसीतारामके विवाहोत्सवसम्बन्धी मंगलका गान करते हैं, गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि वे स्त्री-पुरुष दिनोदिन सब प्रकारका कल्याण प्राप्त करते हैं॥२४॥
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