अतिरिक्त >> कुमकुम कुमकुमगुरुदत्त
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कुमकुम ऐतिहासिक उपन्यास...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
कुमकुम
उसने एक कहारिन की कोख से जन्म लिया था। उसे राजाओं के ज़माने के सुख मिलने लगे थे। एक विद्वान गुरु से उसे गहन गंभीर शिक्षा पाने का अवसर प्राप्त हुआ था। भगवान ने उसे रूप-रंग भी अप्सरा का-सा दिया। नारी से विरक्त बौद्ध महाप्रभु तक उस पर मुग्ध रह गए। लेकिन वह तो इतिहास का कलंक होने का कर्म-फल लेकर बड़ी हुई थी ! क्या वह अपना कलंक धो सकी ?
श्री गुरुदत्त का यह हिन्दी उपन्यास इतिहास की एक लुका-छिपी कहानी पर से पर्दा उठाता है।
इसी उपन्यास में से -
कुमार ! मैं समझता हूँ कि तुम्हारा सम्मतिदाता कोई बहुत ही कम शिक्षित तथा अल्पबुद्धि का स्वामी है। वह यह भी नहीं जानता कि राज्य क्या है और राजा का कर्तव्य क्या है।
राज्य एक ऐसा संस्थान है जो दुष्टों से भले लोगों की रक्षा करता है। जो राजा यह न कर सके वह राज्य का अधिकारी नहीं। उसे सत्ताहीन करना ही धर्म है।
श्री गुरुदत्त का यह हिन्दी उपन्यास इतिहास की एक लुका-छिपी कहानी पर से पर्दा उठाता है।
इसी उपन्यास में से -
कुमार ! मैं समझता हूँ कि तुम्हारा सम्मतिदाता कोई बहुत ही कम शिक्षित तथा अल्पबुद्धि का स्वामी है। वह यह भी नहीं जानता कि राज्य क्या है और राजा का कर्तव्य क्या है।
राज्य एक ऐसा संस्थान है जो दुष्टों से भले लोगों की रक्षा करता है। जो राजा यह न कर सके वह राज्य का अधिकारी नहीं। उसे सत्ताहीन करना ही धर्म है।
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