गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवन्नाम भगवन्नामस्वामी रामसुखदास
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प्रस्तुत पुस्तक में भगवान के नाम की महिमा का वर्णन किया गया है।
कपूताईका दण्ड देकर भगवान् उसे शुद्ध करेंगे। उसे पवित्र करेंगे; क्योंकि वह
भगवान्का अपना है। ऐसे ही भाइयो-बहनो ! हम सब कैसे ही हैं, किसी तरहके ही हैं,
पर हैं तो भगवान्के ही। यह पक्की बात है।
आप मानते नहीं हैं तबतक दुःख पाते हैं। आप मान लें तो यह कपूताई मिट जायगी।
बड़े-बड़े अवगुण मिट जायँगे। प्रभुकी कृपासे शुद्धि हो जायगी। निर्मलता हो
जायगी। भगवानुके सम्बन्धमात्रसे जीव पवित्र हो। जाता है।
भगवान् सत् हैं, भगवान् नित्य हैं। प्रभुके अर्पण कर देनेसे हमारे श्रेष्ठ-से-श्रेष्ठ, उत्तम-से-उत्तम काम भी नित्य हो जायेंगे। नहीं तो ये कर्म फल देकर नष्ट हो जायेंगे। अच्छे शुभ कर्म भी अच्छे शुभ फल देकर, अच्छी परिस्थिति देकर नष्ट हो जायेंगे। वे ही भगवान्के अर्पण कर दें, भगवान्के लिये करें तो वे सत् हो जायेंगे।
हम भगवान्का होकर भगवान्का ही नाम लें। भगवान्का ही चिन्तन करें। भगवान्का ही ध्यान करें। भगवान्के ही गुण सुनें। भगवान्की ही लीला सुनें। भगवान्का ही कीर्तन सुनें और पद गावें। भगवान्के होकर भगवान्का गुण गावें तो हम भगवान्के सम्मुख हो जाते हैं।
भगवान्से विमुख करनेवाला नाशवान्का संग ही कुसंग है। यह प्रभुसे विमुख कर देता है। इस वास्ते नाशवान् पदार्थोंका संग करना, नाशवान्का सहारा लेना कि इनसे हमारा कुछ भला हो जायगा—यह गलती है। सज्जनो ! इससे लाभ होनेवाला है नहीं; क्योंकि यह नाशवान् है, नाशवान् ! नाशवान्का अर्थ क्या होता है ? नाशवाला। जैसे धनवान् होता है। धनवान्का अर्थ क्या ? धनवाला ! धन होनेसे वह धनवाला है। धन न होनेसे धनवाला नहीं कहलायेगा। धनवाला धनके कारणसे है, ऐसे नाशवाला नाशके कारणसे है। धनवान्के पास धनके सिवाय और कोई महत्ता नहीं है। ऐसे नाशवान् संसारमें नाशके सिवाय और कुछ महत्ता नहीं है। यह नाशवान् है, इसका नाश-ही-नाश होगा।
अविनाशी परमात्माके अंश होकर भी नाशवान्के भरोसे कितना दिन काम चलायेंगे—यह एक-एक भाई, एक-एक बहनके सोचनेकी बात है। आप अविनाशी हैं। 'ईस्वर अंस जीव अबिनासी' यह अविनाशी होकर नाशवान्का भरोसा करता है। पता नहीं क्या हो गया ? अक्ल कहाँ चली गयी ! उत्पन्न और नष्ट होनेवाली वस्तुओंका सहारा मानता है। इन चीजोंसे अपनेमें घमण्ड करता है कि मेरे पास इतना धन है, इतनी सम्पत्ति है, मेरे इतने आदमी, इतने घर, इतनी जमीन है। तेरी कबसे है यह ? क्या सदासे तेरी वस्तुएँ थीं और क्या सदा रहेंगी। मनुष्य जानता है, मानता है कि पहले मेरी नहीं थीं, फिर मेरी नहीं रहेंगी, फिर भी अपनी मान करके अभिमान करता है। सज्जनो ! धोखा हो जायगा धोखा ! उनको अपनी माननेसे प्रभुको अपना मानना बंद हो जायगा, भगवान्को अपना कह सकोगे नहीं। ये चीजें रहेंगी नहीं और भगवान्का सम्बन्ध जोड़ा नहीं। जिसे अपनी-अपनी कहते हैं, वे रहेंगी नहीं। जो अपना रहेगा, उसमें अपनापन किया नहीं। रोता रहना पड़ेगा भाई, रोना पड़ेगा।
मौका है अभी, बड़ा सुन्दर ! मनुष्य-शरीर मिला है। इस मनुष्य-शरीरकी बड़ी महिमा है। महिमा इस वास्ते है कि यह मनुष्य प्रभुके साथ सम्बन्ध जोड़ सकता है और दूसरे संसारी जितने भी जीव हैं। मनुष्यके सिवाय, उनमें यह अक्ल नहीं है कि परमात्माके साथ सम्बन्ध जोड़ लें। वहाँ यह समझ नहीं है और यह योग्यता भी नहीं है। यह विवेक नहीं है। भगवान्के साथ सम्बन्ध जोड़नेका एक मनुष्य-शरीरमें ही अवसर है। इस अवसरमें अगर वह नहीं किया तो क्या किया। सांसारिक काम खाना-पीना आदि तो पशु-पक्षी भी करते हैं। नीच-से-नीच प्राणी भी करते हैं। अगर हमने वही काम किया तो सूअर, कुत्ते, ऊँट और गधेकी तरह ही हो गये-
तुलसी हरि की भगति बिन वैसे ही नर नार ॥
नद चीन्ही कृतहीन नर, खलकर दीन्हीं खेह ॥
एक सीधी सरल बात-भगवान् मेरे हैं। ऐसे भगवान्को मेरा कह दिया तो बड़ा असर पड़ता है प्रभुपर। अनेक जन्मोंसे बिछुड़ा हुआ और चौरासी लाख योनियाँ भुगतता हुआ, दुःख पाता हुआ जीव अगर कह दे-‘हे नाथ ! मैं आपका हूँ। हे प्रभु ! आप मेरे हो' तो प्रभुको बड़ा संतोष होगा। बड़े ही राजी होंगे भगवान्। मानो भगवान्की खोयी हुई चीज भगवान्को मिल गयी। बड़ा उपकार होगा भगवान्पर। भगवान्के घाटेकी पूर्ति कर दोगे आप। जीव विमुख हो गया, यह भगवान्के घाटा पड़ गया।
‘सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ॥' करोड़ों जन्मोंके पाप नष्ट हो जायँ। क्योंकि पाप तो भगवान्से विमुख होनेसे ही हुए हैं। सब पापोंकी जड़ तो वहाँसे चली है। भगवान्के सम्मुख होते ही, वे बेचारे पाप टिक नहीं सकेंगे। इस वास्ते ‘हे नाथ ! मैं आपका हूँ। आप मेरे हैं, ऐसे भगवान्के साथ अपनापन है—यह बहुत सार चीज है, असली चीज है। क्रियाओंके द्वारा आप भगवान्को नहीं पकड़ सकते, जितना प्रेमके द्वारा, अपनेपनके द्वारा पकड़ सकते हो। बड़े अच्छे-अच्छे काम करो, यज्ञ करो, दान करो, तीर्थ आदि करो, वेदाध्ययन करो। सब-की-सब लाभकी बात है। परन्तु अपनापन किया जाय—यह बहुत लाभकी और विचित्र बात है।
एक करोड़पतिके यहाँ एक नौकर रहता है, जो बीस हजार रुपये पाता है और करोड़पतिका लड़का है, उसे सौ रुपये महीना भी कोई देता नहीं क्योंकि वह अयोग्य है। परन्त पिता मर जाता है, तो बीस हजार (रुपये) पानेवाला नौकर मालिक नहीं बन सकता, पर अयोग्य लड़का मालिक बन जाता है। वह योग्य तो नहीं है, पर उसका हक लगता है। इस प्रकार योग्यतासे वह अधिकार नहीं मिलता, जो अपनेपनसे मिलता है।
‘प्रभुके हम हैं'-यह बनाया हुआ अपनापन नहीं है। सेठका अपनी तरफसे कोई बेटा बन जाय और कोई उसे पूछे कि तुम कहते हो या सेठ कहता है ? सेठ क्या कहे ? मैं कहता हूँ। तो उसे कोई मानेगा नहीं। सेठ यदि कह दे कि यह हमारा बेटा है। कोई काम पड़ जाय तो सेठके नामपर लाखों रुपये मिल जायेंगे। सेठका कहना जितना दामी है, उतना हमारा कहना दामी नहीं है। भगवान् तो मात्र जीवको अपना कहते हैं-‘ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः' अब केवल आपकी सम्मति होनेकी जरूरत है। सम्मुख होनेकी आवश्यकता है कि मैं भगवान्का हूँ।'
यह सब संसार आपको धोखा देगा, आपसे विमुख हो जायगा, चला जायगा, रहेगा नहीं। शरीर भी नहीं रहेगा। इनको आप अपना कहते हैं—यह बहुत बड़ी भारी गलती है। इनसे विमुख होकर भगवान्से कहें-‘हे नाथ ! मैं आपका हूँ और आप मेरे हैं।' निहाल हो जाओगे, निहाल !
‘होहि राम को नाम जपु'–नाम जपना हो तो रामका होकर नाम जपो। चलते-फिरते जपो, क्योंकि हमारे प्रभुका नाम है।
तुलसी रघुबर नाममें सब काहूका सीर॥
परमात्माके नाममें सबका अधिकार है। पिताकी सम्पत्तिमें पुत्रका पूरा अधिकार है। इस वास्ते हमारे प्रभुका नाम है। कौन मना कर सकता है? बताइये ! हमारे माँ-बाप हैं। ऐसे भगवान्पर अधिकार जमा देवें।
कलिसंतरणोपनिषद्में नामकी महिमा आयी है। नारदजीने ब्रह्माजीके पास जाकर कहा-‘महाराज ! कलियुगमें रहते हुए संसारसे कैसे उद्धार कर लें।' तो ब्रह्माजी कहते हैं ‘भगवान्का नाम लेते हुए।' कौन-सा नाम ? तो कहा-'हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥' यह नाम बताया। इसकी विधि क्या है ? ब्रह्माजीने कहा—विधि है ही नहीं। किये जाओ, लिये जाओ। शुद्ध-अशुद्ध हर अवस्थामें। वह तो भाई उपनिषदोंका मन्त्र है। पर ‘राम-राम' तो बड़ा सीधा और बड़ा सरल है। इसको साबर-मन्त्र कहते हैं। ‘साबर मन्त्र जाल जिन्ह सिरिजा।' इसमें क्या है ? ‘अनमिल आखर अरथ न जापू। प्रगट प्रभाउ महेस प्रतापू।' साबर-मन्त्र कोई छन्दकी विधिसे नहीं बैठते, कोई मात्राओंसे नहीं बैठते। साबर-मन्त्र है, भगवान्ने जो कह दिया, वह मन्त्र हो गया। ऐसे भगवान्का नाम है यह राम-नाम, इतना विलक्षण है।
‘कासीं मुकुति हेतु उपदेसू' नाम महान् मन्त्र है। भगवान् शंकर इसे जपते हैं। इस नामके प्रभावसे आपने मुक्तिका क्षेत्र खोल दिया कि सबकी मुक्ति हो जाय।
अध्यात्मरामायणमें भगवान् शंकर खुद रामजीसे कहते हैं‘भगवन् ! मैं भवानीके सहित काशीमें रहता हूँ। ‘मुमूर्षुमाणस्य दिशामि मन्त्रं तव रामनाम' आपका जो राम-नाम मन्त्र है उसका मैं दान देता हूँ। मरनेवालेको कि, ले लो भाई जिससे तुम्हारा कल्याण हो जाय। एक सज्जन कहते थे, मैंने कई आदमियोंको देखा है। काशीमें मरनेवालेका कान ऊँचा हो जाता है। मानो शंकर इस कानमें मन्त्र देते हैं। वह नाम अपने भी ले सकते हैं, कितनी मौजकी बात है ! कितना ऊँचा नाम है ! जो भगवान् शंकरका इष्ट है, वह हम ले सकते हैं कलियुगी जीव ! कैसी कृपा हो गयी, अलौकिक कृपा हो रही है। थोड़ी-सी बात है। नाम लेने लग जाय, ‘राम राम राम'। सन्तोंने कहा है, 'मुक्ति मुण्डे में थारे तेरे मुँहमें मुक्ति पड़ी है। राम-राम लेकर निहाल हो जा तू। ऐसा सस्ता भगवान्का नाम। जपने लग जाओ, सीधी बात है। खुला भगवान्का नाम है। तिजोरियों में बंद धनको तो आप हिम्मत करके खुला लेते हैं। पर चौड़े पड़े इस धनको लेते ही नहीं ‘राम दड़ी चौड़े पड़ी, सब कोई खेलो आय। दावा नहीं सन्तदास जीते सो ले जाय ॥' जो चाहे सो ले जाय, कैसी बढ़िया बात ! कितनी उत्तम बात ! सबके लिये खुला है। किसीके लिये मनाही नहीं, ऐसा भगवान्का नाम तत्परतासे लिया जाय, उत्साहपूर्वक, प्रेमसे, अपने प्रभुका समझ करके।
सन्तोंने कहा-परलोकमें नाम लेनेवाले और नाम न लेनेवाले दोनों हैं। क्यों ? नाम लेनेवाले रोते हैं कि इस बातका पता नहीं था कि नामकी इतनी महिमा निकलेगी। यह पता होता तो रात-दिन नाम लेते। नाम न लेनेवाले रोते हैं कि हमारा समय खाली चला गया। बिना नामके खाली चला गया। भाई, अब अपनेको पता लग गया। मरनेके बाद पश्चात्ताप करोगे तब क्या होगा? अभी समय है। जबतक यह श्वासकी धोंकनी चलती है, आँखें टिमटिमाती हैं, जीते हैं—यह मौका है; भगवान्का नाम ले लें। लोग हँसे तो परवाह नहीं।
जगत कूकरी को भुसबा दे। तूं तो राम सिमर जग हंसवा दे।।
सम्मान-मानमें तो नुकसान है। अपमान, निन्दा सहनेमें नुकसान नहीं है। इससे पापोंका ही नाश होता है। इधर आप नाम लो और वे हँसी-दिल्लगी उड़ावें तो डबल लाभ होगा।
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