गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवन्नाम भगवन्नामस्वामी रामसुखदास
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प्रस्तुत पुस्तक में भगवान के नाम की महिमा का वर्णन किया गया है।
शब्दमें अलौकिक शक्ति है। जब मनुष्य सोता है, तब उसकी इन्द्रियाँ मनमें, मन
बुद्धिमें और बुद्धि अविद्यामें लीन हो जाती है; परंतु जब सोये हुए मनुष्यका
नाम लेकर पुकारा जाय, तब वह जग जाता है। यद्यपि दूसरे शब्दोंका भी उसपर असर
पड़ता है, उसकी नींद खुल जाती है, तथापि उसके नामका उसपर अधिक असर पड़ता है। इस
प्रकार शब्दमें इतनी शक्ति है कि वह अविद्यामें लीन हुएको भी जगा देता है,* ऐसे
ही भगवन्नाम-संकीर्तनसे, जन्म-जन्मान्तरसे अज्ञान-निद्रामें सोया हुआ मनुष्य भी
जग जाता है। इतना ही नहीं, नाम-संकीर्तनके प्रभावसे सब जगह विराजमान भगवान् भी
प्रकट हो जाते हैं। भगवान् ने कहा है-
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद॥
(आदिपुराण १९ । ३५)
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* शब्दशक्तेरचिन्त्यत्वाच्छब्दादेवापरोक्षधीः।
प्रसुप्तः पुरुषो यद्वच्छब्देनैवावबुध्यते।।
‘नारद ! न तो मैं वैकुण्ठमें निवास करता हूँ और न योगियोंके हृदयमें ही, अपितु जहाँ मेरे भक्त मेरे नाम आदिका कीर्तन करते हैं, मैं वहीं रहता हूँ।'
भगवन्नामकी अपार महिमा होनेसे उसके मानसिक जपका भी सम्पूर्ण प्राणियोंपर प्रभाव पड़ता है और उससे सबका स्वाभाविक हित होता है; परंतु नाम-संकीर्तनका प्रभाव वृक्ष, लता आदि स्थावर और मनुष्य, पशु, पक्षी आदि जङ्गम प्राणियोंपर तो पड़ता ही है, निर्जीव-पत्थर, काष्ठ, मिट्टी, मकान आदिपर भी उसका प्रभाव पड़ता है।
जहाँ नाम-जप, ध्यान, कथा, सत्सङ्ग आदि भगवत्सम्बन्धी बातें हो रही हों, वहाँ जानेसे शान्ति मिलती है, पापोंका नाश होता है, पवित्रता आती है, जीवनपर स्वाभाविक एक विलक्षण प्रभाव पड़ता है; परंतु इसकी अपेक्षा भी कीर्तन-प्रेमीपर नाम-संकीर्तनका विशेष प्रभाव पड़ता है। नाम-संकीर्तनमें संकीर्तन सुननेवाले और देखनेवाले दोनोंपर ही संकीर्तनका प्रभाव पड़ता है। भगवान्के दर्शनका जैसा प्रभाव पड़ता है, वैसा ही प्रभाव कीर्तनप्रेमी भक्तपर संकीर्तनका पड़ता है।
कलियुगमें तो संकीर्तनकी विशेष महिमा है-‘कलौ तद्धरिकीर्तनात्' (श्रीमद्भा० १२ । ३ । ५२)। बंगाल और महाराष्ट्रमें संकीर्तनका विशेष प्रचार है। बंगालमें चैतन्य महाप्रभुने और महाराष्ट्रमें संत तुकाराम आदिने संकीर्तनका विशेष प्रचार किया। वाद्यके साथ एक स्वरमें सबके द्वारा मिलकर संकीर्तन किया जाय तो उससे एक विशेष शक्ति पैदा होती है-‘सङ्घ शक्तिः कलौ युगे।' संकीर्तनके समय अपनी आँखें मीच ले और ऐसा भाव रखे कि मैं अकेला हूँ और मेरे सामने केवल भगवान् खड़े हैं; दूसरोंकी जो आवाज आ रही है, वह भी भगवान्की ही आवाज है। इस प्रकार भगवद्भावसे संकीर्तन करने से बहुत लाभ होता है और कोई पाप, दुर्गुण-दुराचार नहीं रहता; परन्तु भगवान्का साक्षात् अनुभव तभी होता है, जब केवल शुद्ध कीर्तन हो।
महाराष्ट्रमें समर्थ गुरु रामदास बाबा एक बहुत विचित्र संत हुए हैं। इनके सम्बन्धमें एक बात (कथा) प्रसिद्ध है। ये हनुमान्जीके भक्त थे और इनको हनुमान्जीके दर्शन हुआ करते थे। एक बार बाबाजीने हनुमान्जीसे कहा कि महाराज ! आप एक दिन सब लोगोंको दर्शन दें।' हनुमान्जीने कहा कि तुम लोगोंको इकट्ठा करो तो मैं दर्शन दे दूंगा।' बाबाजी बोले कि ‘लोगोंको इकट्ठा तो मैं कर दूंगा।' हनुमान्जीने कहा कि ‘शुद्ध हरिकथा करना।' बाबाजी बोले कि ‘शुद्ध हरिकथा ही करूंगा।'
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