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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवन्नाम

भगवन्नाम

स्वामी रामसुखदास

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :62
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 914
आईएसबीएन :81-293-0777-4

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प्रस्तुत पुस्तक में भगवान के नाम की महिमा का वर्णन किया गया है।

संत तथा राजगुरु होनेके कारण बाबाजीका ऐसा प्रभाव था कि वे जहाँ जाते, वहीं हजारोंकी संख्यामें लोग इकड़े हो जाते। उन्होंने एक शहरमें जाकर कहा कि आज रात शहरके बाहर अमुक मैदानमें हरिकथा होगी। समाचार सुनते ही हरिकथाकी तैयारी प्रारम्भ हो गयी। प्रकाशकी व्यवस्था की गयी, दरियाँ बिछायी गयीं। समयपर बहुत-से लोग इकट्टे हो गये। सब गाने-बजानेवाले आकर बैठ गये और कीर्तन प्रारम्भ हो गया। बीच-बीचमें बाबाजी भगवान्की कथा कह देते और फिर कीर्तन करने लगते। ऐसा करते-करते वे कीर्तनमें ही मस्त हो गये। लोगोंको यह आशा थी कि अब बाबाजी कथा सुनायेंगे, पर वे तो कीर्तन ही करते चले गये। लोगोंके भीतर असली भाव तो था नहीं, अतः उन्होंने सोचा कि यह कीर्तन तो हम घरपर ही कर लिया करते हैं; यहाँ कबतक बैठे रहेंगे ! ऐसा सोचकर वे धीरे-धीरे उठकर जाने लगे। थोड़ी देरमें सभी लोग उठकर चले गये। धीरे-धीरे गाने-बजानेवाले भी खिसक गये। बाबाजी तो आँखें बंद करके अपनी मस्तीमें कीर्तन करते ही रहे। प्रकाशकी व्यवस्था करनेवाले भी चले गये। अब दरीवालोंको कठिनाई हुई कि बाबाजी तो मस्तीसे नाच रहे हैं, दरी कैसे उठायें। उन्होंने भी अटकल लगायी। जब बाबाजी नाचते-नाचते उधर गये तो इधरकी दरी इकट्ठी कर ली और जब वे इधर आये तो उधरकी दरी इकट्ठी कर ली और चल दिये। जब सब चले गये, तब हनुमान्जी प्रकट हो गये। बाबाजीने हनुमान्जीसे कहा कि महाराज ! सबको दर्शन दें।' हनुमान्जी बोले-‘सब हैं कहाँ ?' वहाँ और तो कोई था ही नहीं, केवल बाबाजी ही थे।

इस प्रकार भावपूर्वक केवल भगवन्नामका संकीर्तन करना ‘शुद्ध हरिकथा' है। इस शुद्ध हरिकथासे भगवान् साक्षात् प्रकट हो जाते हैं। वर्तमानमें संकीर्तनकी बड़ी आवश्यकता है। अतः जगह-जगह लोगोंको एक साथ मिलकर अथवा अकेले संकीर्तन करना चाहिये। इससे संसारमात्रमें शान्ति-विस्तार होगा।


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