गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवन्नाम भगवन्नामस्वामी रामसुखदास
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प्रस्तुत पुस्तक में भगवान के नाम की महिमा का वर्णन किया गया है।
शंकर भगवान्की गवाही क्यों दी ? एक तो शंकर राम-नाम लेनेवाले हैं। दूसरी बात,
जिसको गवाही दिया जाय, उसको पूछते हैं-देखो भाई ! सच्ची-सच्ची गवाही देना, तो
वह कहता है—हाँ सच्ची कहता हूँ। पूछनेवाला पूछता है-बिलकुल सच्ची ? हाँ, बिलकुल
सच्ची ? अगर सच्ची ! तो उठाओ गङ्गाजली। ऐसे गोस्वामीजी शंकर भगवान्से कहते
हैं‘महाराज ! सच्ची गवाही देना, आपके सिरपर गङ्गाजी हैं।'
सगरामदासजी कवि कहते हैं-
(1)
ये घोड़ा हाको अबे ओ आयो मैदान॥
ओ आयो मैदान बाग करडी कर सावो।
हिरदे राखो ध्यान राम रसनासों गावो ॥
कुण देखाँ सगराम कहे आगे काढ़े कान।
नरतन दीन्हो रामजी सतगुरु दीन्हो ज्ञान॥
(२)
कहे दास सगराम बड़गड़े घालो घोड़ा।
भजन करो भरपूर रह्या दिन बाकी थोड़ा।।
थोड़ा दिन बाकी रह्या कद पोंछोला ठेट।
अध बीचमें बासो बसो तो पड़सो किणरे पेट ॥
पड़सो किणरे पेट पड़ेगा भारी फोड़ा।
कहे दास सगराम बड़गड़े घालो घोड़ा ॥
भाइयो ! जबानकी सावधानी रखो। जबानसे सत्य बोलो, झूठ मत बोलो। सावधानीके साथ इसका हरदम ख्याल रखो और हरदम भगवान्का नाम लो। झूठ बोलनेसे जिह्वामें शक्ति नहीं होती। जबानमें शक्ति न होनेपर नाम लेनेपर भी जल्दी सिद्धि नहीं होती।
‘जिह्वा दग्धा परान्नेन' पराया हक खानेसे जीभ जल गयी। ‘हस्तौ दग्धौ प्रतिग्रहात्' दूसरोंकी चीज लेनेसे हाथ जल गये। ‘परस्त्रीभिर्मनो दग्धम्' पर-स्त्रियों में मन जानेसे मन जल गया। ‘कथं सिद्धिर्वरानने।' तो सिद्धि कैसे हो ? ताकत न जीभमें रही, न हाथमें रही और न मनमें रही। इस वास्ते भाइयो ! बहनो ! बड़ी सावधानीसे बर्ताव करो और भगवान् का नाम लो।
लोग बड़े-बड़े दुःख पाते हैं और कहते हैं-‘क्या करें चिन्ता नहीं मिटती, हमारा काम नहीं बनता।' अरे भाई, राम-नाम लो न ? मैंने सन्तोंसे सुना है कि राम-नाम है तोपका गोला- जैसे गोला तोप का करत जात मैदान' जैसे तोपका गोला जहाँ जाता है, वहाँ मैदान हो जाता है, ऐसे ही यह राम-नाम है। यह तो प्रत्यक्ष बात है कि जब मनमें चिन्ता आये तो आधा घंटा, एक घंटा नाम जपो, चिन्ता मिट जायगी।
नाम-जपकी विधि
नाम-जपकी खास विधि क्या है ? खास विधि है कि भगवान्के होकर भगवान्के नामका जप करें, ‘होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु'। अब थोड़ी दूसरी बात बताते हैं। भगवान्के नामका जप करो; पर जपके साथमें प्रभुके स्वरूपका चिन्तन भी होना चाहिये। जैसे–‘गङ्गाजी'का नाम लेते हैं तो गङ्गाजीकी धारा दिखती है कि ऐसे बह रही है। ‘गौमाता का नाम लेते हैं तो गायका रूप दिखता है। ऐसे ‘ब्राह्मण'का नाम लेते हैं तो ब्राह्मणरूपी व्यक्ति दिखता है। मनमें एक स्वरूप आता है। ऐसे ‘राम' कहते ही धनुषधारी राम दीखने चाहिये मनसे। इस प्रकार नाम लेते हुए मनसे भगवान्के स्वरूपका चिन्तन करो। यह खास विधि है। पातञ्जलयोगदर्शनमें लिखा है-‘तज्जपस्तदर्थभावनम्', 'तस्य वाचकः प्रणवः' भगवान्के नामका जप करना और उसके अर्थका चिन्तन करना अर्थात् नाम लेते जाओ और उसको याद करते जाओ।
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