उपन्यास >> पहर ढलते पहर ढलतेमंजूर एहतेशाम
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पहर ढलते...
Pahar Dhalte - A Hindi Book by Manzoor Ehtesham
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
पहर ढलते बीहड़ सर्दियों की एक रात के आहिस्ता-आहिस्ता ढलते पहर। फ़जश को इमर्जेंसी के नाख़ूनों ने जकड़ रखा है। शहर की आम बस्तियों से दूर एक आलीशान कोठी के अँधेरे-उजाले में हरकत करते कुछ किरदार, लेखन में उन्हें, रात के अँधेरे में, एक शातिर जासूस की महारत के साथ, ऐसे पकड़ा गया है कि वे कभी यथार्थ लगते हैं कभी फैन्टेसी। इन्हें देखकर सहसा मुक्तिबोध की लम्बी कविता ‘अँधेरे में’ के चरित्र याद आते हैं। इन चरित्रों में नवाब, बेगम, अफसर, मंत्री, व्यापारी, क़व्वाल, औरतें, ख़ादिम, शोहदे, सब हैं। अपनी-अपनी जिम्मेदारियों से बच निकलने का पार्ट अदा करते हुए। इस भुतहा नाटक में पाखंड, गुरूर, नफ़रत, ईर्ष्या, सूफ़ियाना क़लाम, इश्क, पछतावा, आँसू, फ़रेब, मक्कारी सभी के रक्स हैं। रात के एक हिस्से की कहानी के बाहर जाने कितनी और रातें और दिन हैं जहाँ लेखक हमें ले जाता है, और फिर वापस ले आता है, वर्तमान में सक्रिय भूतों की बारात के बीचों-बीच।
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