लोगों की राय
कहानी संग्रह >>
आफ़रीन
आफ़रीन
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2013 |
पृष्ठ :88
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
|
पुस्तक क्रमांक : 9248
|
आईएसबीएन :9788126723478 |
|
7 पाठकों को प्रिय
278 पाठक हैं
|
आफ़रीन
Aafreen - A Hindi Book by Alok Srivastava
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
आफरीन ‘आमीन’ के बाद ‘आफ़रीन’। ग़ज़ल के बाद अफ़साना। ये आलोक श्रीवास्तव की ग़ज़लों का विस्तार है। ‘आफ़रीन’ ‘आमीन’ की उत्तरकथा है। इन कहानियों में भी इंसानी रिश्तों का वही दर्द है जिन्हें आलोक ने जीया, भोगा और फिर अपनी रचनाओं में सहेजा। इस दर्द को भोगने में पाठक लेखक का सहयात्री बनता है। ये कहानियाँ आलोक के जीवन का अक्स हैं। उसके अपने अनुभव। ‘फ़ल्सफ़ा’, ‘तिलिस्म’ और ‘अम्मा’ में तो आलोक सहज ही मिल जाते हैं।
पढ़िए तो लगता है कि हम भी इन कहानियों का किरदार हैं। हमें ‘टैक्स्ट’ को डि-कंस्टक्ट करना पड़ता है। ग़ज़ल हो या कहानी, आलोक की भाषा ताज़ा हवा के झोंके जैसी है। बोलती-बतियाती ये कहानियाँ बोरियत और मनहूसियत से बहुत दूर हैं। खांटी, सपाट, क़िस्सागोई। जैसे आलोक को पढ़ना और सुनना। एक-सा ही है। सहज और लयबद्ध। ग़ज़ल के बाद कहानी ! ख़तरा है। सम्प्रेषण के स्तर पर कहानी मुश्किल है।
शेर पर तुरंत दाद मिलती है, लेकिन कहानी के पूरे होने तक इंतज़ार करना होगा। धीरज के साथ। लम्बे समय तक पाठक को बांधे रखना, कहानी की एक और मुश्किल है। आलोक इस मुश्किल पर खरे उतरे हैं। ‘अम्मा’ और ‘तृप्ति’ बड़ी बात कहती, छोटी-छोटी ‘पत्र-कथाएँ’ हैं। आलोक ने ‘पत्र-कथा’ के रूप में अनूठा शिल्प रचा है। नई पीढ़ी में वे इस शिल्प के जनक हैं और लीक से हट कर चलने का प्रमाण भी। इस तरह, इस छोटी-सी किताब में बड़ा ख़ज़ाना है।
‘आफ़रीन’ में सिर्फ़ सात कहानियाँ हैं। एक कवि के गद्य का छोटा लेकिन सतरंगी आकाश। इसे आलोक की कुल जमा पूंजी से मैंने चुना है। दुष्यंत के बाद आलोक ने हिन्दी में ग़ज़ल के पाठकों की नई जमात तैयार की है। अब कहानियों की बारी है। इन्हें भी पढ़ ही डालिए।
- हेमंत शर्मा
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai