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कंकाल
कंकाल
प्रकाशक :
राजपाल एंड सन्स |
प्रकाशित वर्ष : 2015 |
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 9287
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आईएसबीएन :9789350643020 |
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
जयशंकर प्रसाद बहुआयामी रचनाकार थे, जिनकी लेखन और रंगमंच दोनों पर अच्छी पकड़ थी। कवि, नाटककार, कहानीकार होने के साथ-साथ वह उच्चकोटि के उपन्यासकार भी थे। जयशंकर प्रसाद ने तीन उपन्यास लिखे, तितली, कंकाल और इरावती। अंतिम उपन्यास इरावती उनके निधन के कारण अधूरा रह गया।
कंकाल में लेखक ने हिन्दू धर्म के ठेकेदारों की सच्चाई को उद्घाटित किया है। सत्य और मोक्ष की खोज में लगे धर्म के अनुयायी कैसे अपनी वासना में खुद फँस जाते हैं और औरों को इसका शिकार बनाते हैं। धार्मिक स्थानों के बंद दरवाज़ों के पीछे काम और वासना का यह खेल कैसे लोगों को, विशेषकर मासूम और निर्दोष लड़कियों की जि़ंदगी को तबाह कर देता है, इन सबका बहुत ही मार्मिक ताना-बाना बुना गया है इस उपन्यास में।
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