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दो भाई
दो भाई
प्रकाशक :
विश्व बुक्स |
प्रकाशित वर्ष : 2015 |
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 9298
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आईएसबीएन :8179871991 |
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
कथा सम्राट प्रेमचंद विश्व के उन विशिष्ट कथाकारों की श्रेणी में गिने जाते हैं, जिन्होंने समाज के सभी वर्गों - अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े, जमींदार-किसान, साहूकार-कर्जदार आदि के जीवन और उनकी समस्याओं को यथार्थवादी धरातल पर बड़ी ही सीधी-सादी शैली और सरल भाषा में प्रस्तुत करते हुए एक दिशा देने का प्रयास किया है।
यही कारण है कि प्रेमचंद की कहानियां हिंदी-भाषी क्षेत्रों में ही नहीं, संपूर्ण भारत में आज भी पढ़ी, समझी और सराही जाती हैं। इतना ही नहीं, विदेशी भाषाओं में भी उनकी चुनी हुई कहानियों के अनुवाद हो चुके हैं।
इसी प्रासंगिकता के सदंर्भ में प्रस्तुत है करीबी रिश्तों के कथित प्रेम की आड़ में पनपने वाले ईर्ष्याद्वेष को उजागर करती चुनिंदा कहानियों का संग्रह - ‘दो भाई’ बचपन में एक को रोते देख दूसरा भाई भी रोने लगता था, लेकिन बड़े होने पर वही भाई एक दूसरे की मृत्यु पर भी नहीं रोते क्योंकि अब उन्हें अपने पराए की पहचान हो जाती है। विवाह के बाद तो किशन, अपने सगे भाई को कर्ज दिलाने के नाम पर प्रपंच रच कर उसके हिस्से का घर भी हड़प लेना चाहता है। क्या पत्नी की सीख भाई के प्रेम पर हावी हो जाती है ?
‘दो भाई’ तथा अन्य ऐसी कहानियां जो मानवीय चरित्र के विभिन्न पक्षों को प्रस्तुत करती हैं।
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