लोगों की राय

नारी विमर्श >> और मीरा नाचती रही

और मीरा नाचती रही

ममता तिवारी

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :104
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 9379
आईएसबीएन :9788183617758

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

68 पाठक हैं

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

मैं अलग-अलग पन्नों में अलग-अलग किताबों में छपी ! कभी माँ-बाप के घर में, कभी स्कूल के अहाते में, कभी प्रेम-प्रांगण में, कभी कार्य-स्थल पे तो कभी महफ़िलों में भी, कभी ससुराल में, कभी समाज के समक्ष ! जी हुआ आज कि, उन सारे पन्नों को समेट इक जिल्द में बाँध दूँ...बिखरी-बिखरी सी ‘मैं’ लोगों को बंधे रहने का भ्रम देती रही...यहाँ ‘मैं’ हा स्त्री का प्रतिनिधित्व करती है....कुछ मेरी, कुछ दोस्तों की...कुछ अनजान स्त्रियों की...कुछ आपके आसपास की स्त्री की दास्तान !

स्त्री जीवन में झांकना मानव-स्वभाव की कमजोरी है...तो आप भी टहलें-घूमें, मेरे मन के आँगन में...अतिथि बन के पढ़ें...और समझे...फिर इतमिनान से सोचें कि आखिर यह ‘मीरा’ क्यों नाच रही है अब तक...घुँघरू पहने आपके बनाए रंगमंच पे....???

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai