गीता प्रेस, गोरखपुर >> पौराणिक कथाएँ पौराणिक कथाएँगीताप्रेस
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प्रस्तुत है पौराणिक कथाएँ.....
सीता-शुकी-संवाद
एक दिन परम सुन्दरी सीताजी सखियोंके साथ उद्यानमें खेल रही थीं। वहाँ उन्हें
शुक पक्षीका एक जोड़ा दिखायी दिया जो बड़ा मनोरम था। वे दोनों पक्षी एक डालीपर
बैठकर इस प्रकार बोल रहे थे-'पृथ्वीपर श्रीराम नामसे प्रसिद्ध एक बड़े सुन्दर
राजा होंगे। उनकी महारानी सीताके नामसे विख्यात होंगी। श्रीरामजी बड़े
बुद्धिमान् और बलवान् होंगे। वे समस्त राजाओंको अपने वशमें रखते हुए सीताके
साथ ग्यारह हजार वर्षोंतक राज्य करेंगे। धन्य हैं वे जानकीदेवी और धन्य हैं
श्रीराम, जो एक-दूसरेको प्राप्त होकर इस पृथ्वीपर आनन्दपूर्वक विहार करेंगे।'उनको ऐसी बातें करते देख सीताजीने सोचा-'ये दोनों मेरे ही जीवनकी मनोरम कथा कह रहे हैं। इन्हें पकड़कर सभी बातें पूछूँ।' ऐसा विचारकर उन्होंने अपनी सखियोंके द्वारा उन दोनोंको पकड़वाकर मँगवाया और उनसे कहा-'तुम दोनों बहुत सुन्दर हो, डरना नहीं। बताओ, तुम कौन हो और कहाँसे आये हो? राम कौन हैं? और सीता कौन हैं? तुम्हें उनकी जानकारी कैसे हुई? इन सारी बातोंको शीघ्रातिशीघ्र बताओ। मेरी ओरसे तुम्हें कोई भय नहीं होना चाहिये।'
सीताजीके इस प्रकार पूछनेपर उन पक्षियोंने कहा-'देवि! वाल्मीकि-नामसे प्रसिद्ध एक बहुत बड़े महर्षि हैं, जो धर्मज्ञोंमें श्रेष्ठ माने जाते हैं। हम दोनों उन्हींके आश्रममें रहते हैं। महर्षिने रामायण नामक एक महाकाव्यकी रचना की है, जो सदा ही मनको प्रिय जान पड़ता है। उन्होंने शिष्योंको उसका अध्ययन कराया है तथा प्रतिदिन वे सम्पूर्ण प्राणियोंके हितमें संलग्न रहकर उसके पद्योंका चिन्तन किया करते हैं। उसका कलेवर बहुत बड़ा है। हमलोगोंने उसे पूरा-पूरा सुना है। बारम्बार उसका गान तथा पाठ सुननेसे हमें भी उसका अभ्यास हो गया है। राम और सीता कौन हैं-यह हम बताते हैं तथा इसकी भी सूचना देते हैं कि श्रीरामके साथ क्रीड़ा करनेवाली जानकीके विषयमें क्या-क्या बातें होनेवाली हैं, तुम ध्यान देकर सुनो। महर्षि ऋष्यश्रृंगके द्वारा कराये हुए पुत्रेष्टि-यज्ञके प्रभावसे भगवान् विष्णु राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न-ये चार शरीर धारण करके प्रकट होंगे। देवांगनाएँ भी उनकी उत्तम कथाका गान करेंगी। श्रीराम महर्षि विश्वामित्रके साथ भाई लक्ष्मणसहित हाथमें धनुष लिये मिथिला पधारेंगे। वहाँ वे एक ऐसे धनुषको (जिसे दूसरा कोई उठा भी नहीं सकेगा) तोड़ डालेंगे और अत्यन्त मनोहर रूपवाली जनककिशोरी सीताको अपनी धर्मपत्नीके रूपमें ग्रहण करेंगे। फिर उन्हींके साथ श्रीरामजी अपने विशाल साम्राज्यका पालन करेंगे। ये तथा और भी बहुत-सी बातें जो वहाँ रहते समय हमारे सुननेमें आयी हैं, संक्षेपमें मैंने तुम्हें बता दीं। अब हम जाना चाहते हैं, हमें छोड़ दो।'
कानोंको अत्यन्त मधुर प्रतीत होनेवाली पक्षियोंकी ये बातें सुनकर सीताजीने उन्हें मनमें धारण कर लिया और पुनः उनसे इस प्रकार पूछा-'राम कहाँ होंगे? किसके पुत्र हैं और कैसे वे दूल्हा-वेशमें आकर जानकीको ग्रहण करेंगे तथा मनुष्यावतारमें उनका श्रीविग्रह कैसा होगा? उनके प्रश्रको सुनकर शुकी मन-ही-मन जान गयी कि ये ही सीता हैं। उन्हें पहचानकर वह सामने आकर उनके चरणोंमें गिरकर बोली-'श्रीरामका मुख कमलकी कलीके समान सुन्दर होगा। नेत्र बड़े-बड़े और खिले हुए पंकजकी शोभाको धारण करनेवाले होंगे। नासिका ऊँची, पतली तथा मनोहारिणी होगी। दोनों भौंहें सुन्दर ढंगसे मिली होनेके कारण मनोहर प्रतीत होंगी। गला शंखके समान सुशोभित और छोटा होगा। वक्षःस्थल उत्तम, चौड़ा और शोभासम्पन्न होगा, उसमें श्रीवत्सका चिह्न होगा। सुन्दर जाँघों और कटिभागकी शोभासे युक्त दोनों घुटने अत्यन्त निर्मल होंगे, जिनकी भक्तजन आराधना करेंगे। श्रीरामजीके चरणारविन्द भी परम शोभायुक्त होंगे और सभी भक्तजन उनकी सेवामें सदा संलग्न रहेंगे। श्रीरामजी ऐसा ही मनोहर रूप धारण करनेवाले हैं। जिसके सौ मुख हैं, वह भी उनके गुणोंका बखान नहीं कर सकता, फिर हमारे-जैसे पक्षीकी क्या बिसात है। परम सुन्दर रूप धारण करनेवाली लावण्यमयी लक्ष्मी भी जिनकी झाँकी करके मोहित हो गयीं, उन्हें देखकर पृथ्वीपर दूसरी कौन स्त्री है, जो मोहित न होगी। उनका बल और पराक्रम महान् है। वे अत्यन्त मोहक रूप धारण करनेवाले हैं। मैं श्रीरामका कहाँतक वर्णन करूँ वे सब प्रकारके ऐश्वर्यमय गुणोंसे युक्त हैं। परम मनोहर रूप धारण करनेवाली वे जानकीदेवी धन्य हैं, जो श्रीरामजीके साथ हजारों वर्षोंतक प्रसन्नतापूर्वक विहार करेंगी, परंतु सुन्दरि! तुम कौन हो? तुम्हारा नाम क्या है, जो इतनी चतुरता और आदरके साथ श्रीरामके गुणोंका कीर्तन सुननेके लिये प्रश्न कर रही हो?'
शुकीकी ये बातें सुनकर जनककुमारी सीता अपने जन्मकी ललित एवं मनोहर चर्चा करती हुई बोलीं-'जिसे तुमलोग जानकी कह रहे हो, वह जनककी पुत्री मैं ही हूँ। मेरे मनको लुभानेवाले श्रीराम जब यहाँ आकर मुझे स्वीकार करेंगे, तभी मैं तुम्हें छोडूँगी, अन्यथा नहीं; क्योंकि तुमने अपने वचनोंसे मेरे मनमें लोभ उत्पन्न कर दिया है। अब तुम इच्छानुसार खेल करते हुए मेरे घरमें सुखसे रहो और मीठे-मीठे पदार्थ भोजन करो।' यह सुनकर शुकीने जानकीजीसे कहा-'साध्वि! हम वनके पक्षी हैं, पेड़ोंपर रहते हैं और सर्वत्र विचरा करते हैं हमें तुम्हारे घरमें सुख नहीं मिलेगा। मैं गर्भिणी हूँ अपने स्थानपर जाकर बच्चे पैदा करूँगी। उसके बाद फिर तुम्हारे आ जाऊँगी।' उसके ऐसा कहनेपर भी सीताजीने उसे छोड़ा। तब उसके पति शुकने विनीत वाणीमें उत्कण्ठित होकर कहा-'सीता! मेरी सुन्दरी भार्याको छोड़ दो। इसे क्यों रख रही हो? शोभने! यह गर्भिणी है। सदा मेरे मनमें बसी रहती है। जब यह बच्चोंको जन्म दे लेगी, तब मैं इसे लेकर तुम्हारे पास आ जाऊँगा।' शुकके ऐसा कहनेपर जानकीजीने कहा-'महामते! तुम आरामसे जा सकते हो, किंतु तुम्हारी यह भार्या मेरा प्रिय करनेवाली है। मैं इसे अपने पास बड़े सुखसे अपनी सखी बनाकर रखूँगी।'
यह सुनकर पक्षी दुखी हो गया। उसने करुणायुक्त वाणीमें कहा-'योगीलोग जो बातें कहते हैं वह सत्य ही है-किसीसे कुछ न कहे, मौन होकर रहे, नहीं तो उन्मत्त प्राणी अपने वचनरूपी दोषके कारण ही बन्धनमें पड़ता है। यदि हम इस पेड़पर बैठकर वार्तालाप न करते होते तो हमारे लिये यह कथन कैसे प्राप्त होता? इसलिये मौन ही रहना चाहिये था।'
इतना कहकर पक्षी पुनः बोला-'सुन्दरि! मैं अपनी इस भार्याके बिना जीवित नहीं रह सकता, इसलिये इसे छोड़ दो। सीता! तुम बड़ी अच्छी हो। मेरी प्रार्थना मान लो।' इस तरह नाना प्रकारकी बातें कहकर उसने समझाया, परंतु सीताजीने शुकीको नहीं छोड़ा। तब शुकीने पुनः कहा-'सीते! मुझे छोड़ दो, अन्यथा शाप दे दूँगी।' सीताजीने कहा-'तुम मुझे डराती- धमकाती हो! मैं इससे तुम्हें नहीं छोडेगी।' तब शुकीने क्रोध और दुःखमें आकुल होकर जानकीजी कौए शाप दिया-'अरी! जिस प्रकार तू मुझे इस समय अपने पतिसे विलग कर रही है, वैसे ही तुझे स्वयं भी गर्भिणी-अवस्थामें श्रीरामसे अलग होना पड़ेगा।' यों कहकर पतिवियोगके शोकमें उसके प्राण निकल गये। उसने श्रीरामका स्मरण तथा पुनः-पुनः राम-नामका उच्चारण करते हुए प्राण-त्याग किया था, इसलिये उसे ले जानेके लिये सुन्दर विमान आया और वह शुकी उसपर बैठकर भगवान्के धामको चली गयी।
भार्याकी मृत्यु हो जानेपर शुक शोकसे आतुर होकर बोला-'मैं मनुष्योंसे भरी हुई श्रीरामकी नगरी अयोध्यामें जन्म लूँगा और इसका बदला चुकाऊँगा। मेरे ही वाक्यसे उद्वेगमें पड़कर तुम्हें पतिवियोगका भारी दुःख उठाना पड़ेगा।' यह कहकर उसने भी अपना प्राण छोड़ दिया। (पद्यपुराण)
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