स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारिक तेल चमत्कारिक तेलउमेश पाण्डे
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नारियल का तेल
नारियल के विभिन्न नाम
हिन्दी- नारियल, खोपरा, संस्कृत- नारिकेल, सदाफल, छड़फल, लांगली, बंगला- नारिकेल, नारकोल, मराठी- नारली, नारल, गुजराती-नालीएर, तैलुगुटेंकोचाँ, नारिकदम, तामिल- टेन्ना, टेंगा, फारसी- जोज, अरबी- नारजिस, अंग्रेजी-Coconut, लेटिन— कोकोस न्यूसीफेरा (Cocos nucifera)
यह वनस्पति जगत के Palmae (पामी) अर्थात् Palmaceae (पामेसी) कुल का सदस्य है।
नारियल लवणयुक्त भूमि में तेजी से पनपने वाला वृक्ष होता है। अतः समुद्र के किनारे तथा उसके आस-पास वाले क्षेत्रों में बहुतायत से पाया जाता है। इसके वृक्ष में मात्र एक लम्बा तना होता है जो कि काष्ठीय होता है। इसमें शाखायें नहीं होती। तने के शीर्ष पर पत्तियों का मुकुट होता है। पत्तियां दीर्घवृन्त वाली संयुक्त प्रकार की होती हैं। पत्तियों के बीच-बीच से फूल निकलते हैं। पुष्प झोंपदार, सुन्दर तथा पीले रंग के होते हैं। ये पुष्प बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में पुष्पित होते हैं। फल वर्षा काल में लगते हैं। फल ड्रप (Drupe) जाति के होते हैं। ये कठोर होते हैं। फलों के ऊपर के आवरण को हटाने पर कड़ा भाग निकलता है। इस कड़े भाग को तोड़ने पर इसके भीतर सफेद रंग का गोला होता है जो कि ब्राऊन रंग की सतह वाला होता है। इस भाग को ही खाया जाता है तथा इसी भाग से ही तेल निकाला जाता है। बंगाल, मुम्बई, मद्रास तथा तटीय दक्षिण भारत में यह बहुतायत से होता है।
नारियल का तेल नारियल के गोले से सम्पीड़न विधि से निकाला जाता है। सूखे हुये गोले का सम्पीड़न करने पर मुख्यतः तेल प्राप्त होता है जिसे गर्म करके शुद्ध तेल प्राप्त कर लिया जाता है। नारियल का तेल रंगहीन अथवा हल्के पीले वर्ण का होता है। यह पारदर्शक होता है। 20. सेल्सियस पर यह जम जाता है। 15. से. ग्रेड पर मोम की भांति हो जाता है। यह स्वाद में मधुर एवं रुचिकर होता है।
आयुर्वेदानुसार यह तेल केशों के लिए परम हितकर, कुष्ठ रोगनाशक, व्रणों को ठीक करने वाला, पुष्टिकारक, मूत्राशय शोधक, बलदायक तथा रक्त विकारहर है। कॉड लीवर आयल के खदले में नारियल के तेल का प्रयोग किया जाता है, इसलिये इसे कॉडलीवर ऑयल का प्रतिनिधि भी कहा जाता है|
नारियल के तेल का औषधीय महत्त्व
नारियल का तेल अत्यन्त गुणकारी तेलों में माना जाता है। इस तेल के अनेक ऐसे औषधीय प्रयोग हैं जो व्यक्ति की पीड़ा का शमन करके उन्हें सुख की अनुभूति कराते हैं। नारियल का तेल औषधीय रूप में अत्यन्त लाभदायक है। इसका अनेक रोगों में उपयोग करने पर बहुत अधिक लाभ की प्राप्ति होती हैं। इसका प्रयोग करना अत्यन्त आसान है। नारियल के तेल के कुछ प्रमुख औषधीय प्रयोग निम्न हैं-
मुखगुहा के भीतर व्रणादि को दूर करने हेतु- जो लोग प्राय: सुपारी खाते हैं, तम्बाकू चबाते हैं अथवा गुटखा खाते हैं, उनके मुख के भीतर की तरफ घाव हो जाते हैं अथवा गाल के भीतर की त्वचा कड़ी होने लगती है। मुखगुहा के भीतर के घावों को ठीक करने हेतु अथवा घाव होवें ही नहीं, इसके लिये नित्य एक अंगुली की सहायता से मुख के भीतर चारों ओर नित्य थोड़ा सा खोपरे का तेल लगा लेना चाहिये। ऐसा करने से गाल के भीतर व्रण, घाव आदि भर जाते हैं तथा गाल के भीतर की त्वचा नर्म बनी रहती है।
केशों के उपकार में- नारियल का तेल केशों के लिये परम हितकारी है। इस हेतु सिर में नित्य स्नान के पश्चात् नारियल का तेल लगाना चाहिये। नारियल के तेल में शीतलता हेतु थोड़ा सा कर्पूर भी मिलाया जा सकता है। इस प्रकार नियमित इस तेल का प्रयोग करने से केश स्वस्थ रहते हैं, वे लम्बे होते हैं, असमय गिरते नहीं हैं तथा असमय पकते भी नहीं है। नारियल के तेल के नित्य सिर में लगाने से रूसी भी नहीं पड़ती।
दौर्बल्य में- शरीर दौर्बल्य में नारियल का तेल लाभ करता है। इस हेतु नित्य कुछ दिनों तक इसकी आधी चम्मच मात्रा सेवन करनी चाहिये। ध्यान रहे इसके अधिक समय तक लगातार सेवन करने से अतिसार हो जाता है। अत: 15-20 दिन लेकर फिर 5-7 दिनों तक इसका प्रयोग रोक देना चाहिये।
जवर तथा कास की स्थिति में- ज्वर तथा कास प्रकट होने पर हाथ तथा पैरों पर नारियल के तेल की मालिश करने से लाभ होता है। विशेष रूप से तेल की मालिश दोनों हथेलियों, पदतलों एवं पिण्डलियों पर करनी चाहिये।
चर्म रोगों पर- नारियल का तेल चर्मरोगों पर भी प्रभावी है। त्वचा पर एक्जिमा अथवा दाद हो जाने की स्थिति में इस तेल को लगाने से लाभ होता है। खुजली चलने पर नारियल के तेल में थोड़ा सा कपूर मिलाकर लगाने से त्वरित लाभ होता है। इसी प्रकार रूखी त्वचा पर कर्पूर मिश्रित नारियल के तेल की मालिश करने से उसकी शुष्कता दूर होती है।
व्रणों पर- शरीर पर व्रण हो जाने की स्थिति में नारियल के तेल में हल्दी मिलाकर, गर्म करके संबंधित स्थान पर लगाने से तुरन्तु आराम मिलता है।
पेट के कीड़े मारने हेतु- आंत्र में फीते के समान कीड़े या गिंडोले पड़ जाने की स्थिति में नारियल के तेल की आधा चम्मच मात्रा खाली पेट 3-4 दिनों तक लेने से बहुत लाभ होता है। इस प्रयोग के परिणामस्वरूप कीड़े नष्ट होकर मल के साथ बाहर निकल आते हैं।
नारियल के तेल का विशेष प्रयोग
नारियल के तेल के इस सरल प्रयोग को मैंने कई बार अनेक लोगों द्वारा प्रयोग करवाया है तथा इसके विलक्षण प्रभाव का अनुभव किया है। यह प्रयोग जलने के उपचारार्थ है। प्रायः ऐसा देखने में आता है कि चाहे किसी गर्म पात्र को गलती से पकड़ लेने से अथवा अत्यधिक गर्म पदार्थ के शरीर पर गिर जाने से हम जल जाते हैं। इससे हमें काफी कष्ट एवं पीड़ा होती है। ऐसे समय यह उपचार सर्वश्रेष्ठ है। इसके अन्तर्गत थोड़े से पानी में खाने वाला चूना घोल लें। वह जल में आधा-अधूरा घुलेगा। उस चूने घुले पानी में थोड़ा सा नारियल का तेल मिला दें। संभव हो तो कुछ बूंदे डेटॉल की भी मिला सकते हैं। इस मिश्रण को जले हुये भाग पर रूई की सहायता से लगा दें। इसके लगाते ही संबंधित भाग की जलन समाप्त हो जाती है, वह ठण्डा हो जाता है। जलने के तुरन्त बाद ही यदि इसे लगाया जाये तो न तो उस स्थान पर न छाला पड़ता है और न ही दाग। मेरे विचार से प्रत्येक घर में चूने की एक डिब्बी तथा नारियल का तेल एक स्थान पर सहेज कर अवश्य रखना चाहिये ताकि जब भी आवश्यकता हो, उसका तुरन्त प्रयोग किया जा सके।
नारियल के तेल के चमत्कारिक प्रयोग
नारियल का प्रयोग पूजन तथा प्रत्येक शुभ एवं मांगलिक कार्यों में अवश्य होता है, इस बारे में सभी जानते हैं किन्तु यहां हम केवल नारियल के तेल की चर्चा कर रहे हैं, अतः उससे संबंधित कुछ चमत्कारिक प्रयोगों को ही यहां लिखा जा रहा है-
> यह प्रयोग आपको सभी प्रकार की सुख-समृद्धि प्रदान करेगा। इस प्रयोग को करने का श्रेष्ठ समय दीपावली होता है। दीपावली के दिन थोड़ा सा नारियल का तेल लेकर उसमें आवश्यक मात्रा में सिंदूर मिला लें। सिंदूर इतना मिलायें कि मिश्रण से कुछ लिखा जा सके। अब अपने दाहिने हाथ की अनामिका से घर के मुख्य द्वार के बायीं ओर शुभ तथा दाहिनी ओर लाभ लिख दें। इसी प्रकार द्वार के ऊपर मध्य में श्री लिख दें। इस प्रयोग के चमत्कारिक प्रभाव से घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है। दीपावली को हम सभी घर की पूरी सफाई करके मां लक्ष्मी की पूजा कर हैं। अगर उपरोक्त उपाय भी कर लिया जाये आपको आश्चर्यजनक रूप से लाभ की प्राप्ति होगी।
> यह एक यंत्र प्रयोग है। इसके लिये भी श्रेष्ठ समय दीपावली का ही है। यह यंत्र प्रयोग ऐसे व्यावसायियों के लिये है जिनका व्यवसाय एकाएक लाभ के स्थान पर
हानि देने लगता है। इस प्रयोग से हानि देने वाले कारण समाप्त होंगे और व्यवसाय तीव्र गति से चलेगा जिससे आशा से भी अधिक लाभ की प्राप्ति होगी। जिन लोगों का व्यवसाय ठीक चल रहा है किन्तु वे उसे अधिक बढ़ाना चाहते हैं तो वे भी यह उपाय करके लाभ ले सकते हैं। यह उपाय अत्यन्त सरल है, इसे आप आसानी से कर सकते हैं।
आप अपने प्रतिष्ठान में दीपावली की पूजा करें, उससे पहले इस यंत्र का निर्माण कर लें। यंत्र निर्माण के लिये विद्वान ज्योतिषी से शुभ मुहूर्त के बारे में जान लें। शुभ समय में प्रतिष्ठान में ही उपयुक्त स्थान देख कर स्थान शुद्धि कर लें। सूती अथवा ऊनी आसन पर आप इस प्रकार बैटें कि आपका मुँह उत्तर की तरफ हो। एक कटोरी में थोड़ा इत्र भी मिला लें। इसे लिखने योग्य बना लें। अनार वृक्ष की टहनी की कलम बनाकर एक स्वच्छ भोजपत्र पर अग्रांकित यंत्र का निर्माण कर लें। यंत्र निर्माण के पश्चात् इसे स्वच्छ स्थान पर रख दें। जब आप दीपावली का पूजन करें, तब इस यंत्र की भी पूजा कर लें। रात्रि भर यंत्र को पूजा में ही रखा रहने दें। दूसरे दिन प्रातः यंत्र को श्रद्धापूर्वक उठाकर सुरक्षित रख दें। बाद में इसे फोटो फ्रेम करवा कर जहां आप बैठते हैं, उसके पीछे वाली दीवार इस प्रकार से लगायें कि आपके सामने बैठने वाले व्यक्ति को यह दिखाई दे। इस यंत्र को लगाने से ऊपर बताये गये लाभ तो मिलते ही हैं, साथ ही प्रतिष्ठान में कोई संकट नहीं आता है, किसी की बुरी नज़र भी नहीं लगती है तथा सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। यंत्र इस प्रकार है
विशेष- अगर दीपावली दूर हो और आप पहले ही यह प्रयोग करना चाहते हैं तो शुक्लपक्ष के प्रथम शुक्रवार को उपरोक्त विधि से यंत्र निर्माण करके प्रयोग में लाया जा सकता है।
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