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गीता प्रेस, गोरखपुर >> क्या करें क्या न करें

क्या करें क्या न करें

राजेन्द्र कुमार धवन

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 942
आईएसबीएन :81-293-0088-5

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प्रस्तुत है क्या करें क्या न करें आचार संहिता....

Kya Karen Kya Na Karen-A Hindi Book by Rajendra Kumar Dhavan - क्या करें क्या न करें - राजेन्द्र कुमार धवन

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्राक्कथन

हिन्दू-संस्कृति अत्यन्त विलक्षण है। इसके सभी सिद्धान्त पूर्णतः वैज्ञानिक और मानवमात्र की लौकिक तथा पारलौकिक उन्नति करनेवाले हैं। मनुष्यमात्र का सुगमता से एवं शीघ्रता से कल्याण कैसे हो—इसका जितना गम्भीर विचार हिन्दू-संस्कृति में किया गया है, उतना अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता। जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त मनुष्य जिन-जिन वस्तुओं एवं व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है और जो-जो क्रियाएँ करता है, उन सबको हमारे क्रान्तिदर्शी ऋषि-मुनियों ने बड़े वैज्ञानिक ढंग से सुनियोजित, मर्यादित एवं सुसंस्कृत किया है और उन सबका पर्यवसान परमश्रेय की प्राप्ति में किया है। इसलिए भगवान् ने गीता में बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा है—

यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।
तस्माच्छास्त्रम् प्रमाणं ते कार्याकार्य व्यवस्थितौ।
ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तम् कर्म कर्तुमिहार्हसि।।

(गीता 16/23-24)

‘जो मनुष्य शास्त्रविधि को छोड़कर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है, वह न सिद्धि (अन्तःकरण की शुद्धि)—को, न सुख (शान्ति)—को और न परमगति को ही प्राप्त होता है। अतः तेरे लिये कर्तव्य-अकर्तव्य की व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण है—ऐसा जानकर तू इस लोकमें शास्त्रविधि से नियत कर्तव्य-कर्म करनेयोग्य है अर्थात् तुझे शास्त्रविधि के अनुसार कर्तव्य-कर्म करने चाहिये।’



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