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सेवासदन
सेवासदन
प्रकाशक :
डायमंड पब्लिकेशन्स |
प्रकाशित वर्ष : 2014 |
पृष्ठ :280
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 9422
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आईएसबीएन :8128400029 |
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘‘सेवासदन’’ हिन्दी और शायद उर्दू में भी सबसे पहला सामाजिक उपन्यास है। इस कृति में समाज की अनेक समस्याओं को एक साथ पूर्ण रूप से उभारा गया है। वस्तुतः प्रेमचन्द का सेवासदन एक ऐसा उपन्यास है जिसने उन्हें हिन्दी उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठित किया और समूचे उपन्यास साहित्य को नई दिशा दी।
उपन्यास की नायिका, सुमन का विवाह एक गरीब व्यक्ति से होता है, जी अच्छे वस्त्र और सुविधा-सम्पन्न जीवन को उसकी स्वाभाविक इच्छा को पूरा नहीं कर पाता। उसका पिता ईमानदार पुलिस अफसर है। उसके सहयोगी और अधीनस्थ कर्मचारी उससे रुष्ट हैं, क्योंकि घूसखोरी आदि कुप्रथाओं का वह विरोध करता है और इस प्रकार उनके पथ का कंटक है। उसे अपनी पुत्री का विवाह करना है, इसलिए वह पथभ्रष्ट होता है। उसकी गिरफ्तारी होती है और उसे कारावास मिलता है।
रात को एक सखी के घर से लौटने में सुमन को देर हो जाती है। असंतोष और खीज से त्रस्त उसका पति रात में उसे घर से बाहर निकाल देता है। वह अपनी सखी के घर जने का प्रयत्न करती है परन्तु असफल रहती है। अन्त में, उसके पड़ोस में रहने वाली एक वेश्या उसे शरण देती है। सुमन साध्वी नारी के पद से गिरती है। इस प्रकार सेवासदन उस महिला की कहानी है जिसे हालात ने वेश्या बना दिया। समाज में व्याप्त वेश्या समस्या का इसमें विस्तार से चित्रण हुआ है। यह केवल वेश्या समस्या का ताना-बाना नहीं है बल्कि भारतीय नारी की विवश स्थिति और उसके गुलाम जीवन की नियति को बड़े ही मार्मिंक ढंग से रेखांकित करने वाली कृति है।
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