नाटक-एकाँकी
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वो अब भी पुकारता हैपीयूष मिश्रा
मूल्य: $ 5.95 |
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सखाराम बाइंडरविजय तेन्दुलकर
मूल्य: $ 10.95 |
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हंसनीएंतोन चेखव
मूल्य: $ 8.95 हंसनी मुख्य रूप से कलाकारों के अपने रचनात्मक और व्यक्तिगत जीवन के बीच तालमेल न बैठा पाने की पीढ़ी का लेखा-जोखा है। प्रतिष्ठित अभिनेत्री आर्कदीना स्थापित और लोकप्रिय लेखक त्रिगोरिन के प्रेम के बिना जिन्दा नहीं रह सकती। त्रिगोरिन रचना-कर्म को बेहद नीरस पाता है, मगर लिखने के लिए अभिशप्त है। आगे... |
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रक्त अभिषेकदयाप्रकाश सिन्हा
मूल्य: $ 12.95 |
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कैद-दर-कैदमृदुला गर्ग
मूल्य: $ 14.95 |
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राम कथागोपाल उपाध्याय
मूल्य: $ 18.95 |
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मुआवजेभीष्म साहनी
मूल्य: $ 7.95 |
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शादी का एल्बमगिरीश कारनाड
मूल्य: $ 12.95 |
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ययातिगिरीश कारनाड
मूल्य: $ 10.95 |
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हयवदनगिरीश कारनाड
मूल्य: $ 12.95 |
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आधे अधूरे (पेपरबैक)मोहन राकेश
मूल्य: $ 10.95 |
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मातोश्रीसुमित्रा महाजन
मूल्य: $ 12.95 ‘मातोश्री’ देवी अहिल्याबाई के मातृत्व के श्रेष्ठ गुणों का परिचायक एक उत्कृष्ट नाटक है आगे... |
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आगामी आदमीप्रभात कुमार भट्टाचार्य
मूल्य: $ 8.95 आखिरकार निहित स्वार्थों के विरुद्ध कार्रवाई की बागडोर अब आम आदमी के हाथों पहुँच गई है-आगामी आदमी में आगे... |
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एक कंठ विषपायीदुष्यंत कुमार
मूल्य: $ 9.95 शिव-सती प्रसंग को आधार बनाकर लिखी गयी इस काव्य-नाटिका में दुष्यन्त कुमार ने बड़ी बेबाकी से कई ऐसे प्रसंगों को उठाया है जो हमारे समय में प्रासंगिक हैं आगे... |
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पारसी थियेटर : उद्भव एवम विकाससोमनाथ गुप्ता
मूल्य: $ 22.95 ऐसा ग्रंथ हिन्दी में पारसी थियेटर पर नहीं लिखा गया जिसमें मूलभूत स्रोतों पर अवलम्बित इतनी अधिक सामग्री मिलती हो आगे... |
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श्रेष्ठ भारतीय एकांकी (1 - 2)प्रभाकर श्रोत्रिय
मूल्य: $ 19.95 श्रेष्ठ भारतीय एकांकी संकलन आगे... |
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आधुनिक भारतीय नाट्य विमर्शजयदेव तनेजा
मूल्य: $ 22.95 |
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चोर निकल के भागामृणाल पांडे
मूल्य: $ 6.95 समकालीन हिंदी कथा-साहित्य, नाटक और पत्रकारिता को अपनी रचनात्मक उपस्थिति से समृद्ध करनेवाली रचनाकार मृणाल पाण्डे की यह नवीनतम नाट्यकृति है आगे... |
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एकत्र : असंकलित रचनाएंजयदेव तनेजा
मूल्य: $ 34.95
मोहन राकेश की कुछ आरम्भिक-अज्ञात कुछ अल्प-ज्ञात, कुछ आधी-अधूरी और कुछ पूरी-परिपक्व एवं चर्चित, किंतु पुस्तक रूप में अब तक अप्रकाशित, लगभग सम्पूर्ण रचनाओं का अनूठा संकलन आगे... |
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हिन्दी एकांकीसिद्धनाथ कुमार
मूल्य: $ 14.95 नुक्कड़ नाटक को हिन्दी नाटक की नव्यतम प्रवृत्ति के रूप में स्वीकार करते हुए उसका भी विवेचन इस पुस्तक में किया गया है आगे... |