विभिन्न रामायण एवं गीता >> श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1महर्षि वेदव्यास
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भगवद्गीता की पृष्ठभूमि
राजविद्याराजगुह्ययोग - नामक नौवाँ अध्याय
1-6 प्रभावसहित ज्ञान का विषय।
7-10 जगत की उत्पत्ति का विषय।
11-15 भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृतिवालों की निन्दा और दैवी
प्रकृतिवालों के भगवद्भजन का प्रकार।
16-19 सर्वात्मरूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन।
20-25 सकाम और निष्काम उपासना का फल।
26-34 निष्काम भगवद्भक्ति की महिमा।
विभूतियोग - नामक दसवाँ अध्याय
1-7 भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल।
8-11 फल और प्रभाव सहित भक्तियोग का कथन।
12-18 अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति तथा विभूति और योगशक्ति को कहने के
लिये प्रार्थना।
19-42 भगवान द्वारा अपनी विभूतियों का और योगशक्ति का कथन।
विश्वरूपदर्शनयोग - नामक ग्यारहवाँ अध्याय
1-4 विश्वरूप के दर्शन-हेतु अर्जुन की प्रार्थना।
5-8 भगवान द्वारा अपने विश्वरूप का वर्णन।
9-14 संजयद्वारा धृतराष्ट्र के प्रति विश्वरूप का वर्णन।
15-31 अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना।
32-34 भगवान द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन और अर्जुन को युद्ध के लिये
उत्साहित करना।
35-46 भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुजरूप का दर्शन
कराने के लिये प्रार्थना।
47-50 भगवान द्वारा अपने विश्वरूप के दर्शन की महिमा का कथन तथा चतुर्भुज
और सौम्यरूप का दिखाया जाना।
51-55 बिना अनन्य भक्ति के चतुर्भुजरूप के दर्शन की दुर्लभता का और फलसहित
अनन्य भक्ति का कथन।
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