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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


१८१. आत्माकी गतिमें तम्बाकू बहुत नुकसान पहुँचानेवाली है।

१८२. ऐसी चेष्टा करे जिससे अनाजमें जीव नहीं पड़ें, यदि पड़ जायें तो उस समय बाजारभावसे बेच देना चाहिये। यदि नहीं बेचे तो पाप है, उनमें भी पीसनेवालेको तथा पेरनेवालेको ज्यादा पाप है।

१८३. चाहे जैसा भी पापी क्यों न ही कल्याण हो सकता है, हिम्मत रखनी चाहिये। आपलोग अपने साधनके समयको थोड़ा सुधार लें तो कल्याण हो सकता है। ईश्वरकी शरण लेनेसे काम बना पड़ा है। विचारनेकी बात है कि हमलोगोंका समय प्राय: व्यर्थ व्यतीत होता है।

१८४. दवाईमें उत्तम (१) काष्ठादि (२) धातुसे बनी औषधि  (३) सौंफ इत्यादिका अर्क निषिद्ध है, मदिरासे नीचे है।
(४) नौसादर घृणित होनेसे त्याज्य है।

१८५. दूध, घी, खोआ गायका सात्विक, भैंस, बकरीका २ नं० है।

१८६. एक महत्त्वकी बात जिसके माननेसे आपका कल्याण हो जायेगा। सुखमें आपलोग प्रसन्न रहते हैं ही, मनके विरुद्धमें भी प्रसन्न रहनेसे कल्याण हो जायेगा।

१८७. कोई आपत्ति आपके ऊपर आये इसे आप समझ लें कि मेरे लिये यह भगवान् का पुरस्कार आया है। ऐसा समझकर बहुत आनन्द मानना चाहिये।
 
१८८. पर इच्छा, दैव इच्छा इन सबको परमेश्वरकी इच्छा समझकर बहुत प्रसन्न होना चाहिये।

१८९. कन्यादान साधूको दे तो दाता-गृहीता दोनों नरक में जायेंगे। तामसी दानमेों लेने और देनेवाले दोनों को नरक होता है जैसे कोई कसाईको दान दे।

१९०. ग्रहणके समय कन्यादान न करे, वह समय तो भूखोंको अन्न आदि दान देनेका है।

१९१. गंगा किनारे प्याऊ लगादे तो यह ठीक नहीं। प्याऊ लगाना हो तो मरुभूमिमें लगाये वह देश प्याऊका पात्र है।

१९२. सूर्य उदय होनेके बाद सब तारे अस्त हो जाते हैं, इसी तरह भगवत्प्राप्ति होनेके बाद उसके सब सांसारिक सुखोंका नाश हो जाता है, केवल एक परमात्मा ही रह जाता है।

१९३. मुझे सबसे ज्यादा प्यारे भगवान् लगते हैं, इसलिये भगवान् की बनायी हुई गीता मुझे बहुत प्यारी लगती है। इसी तरह लगती हैं।

१९४. निष्काम प्रेमभावसे सत्संग करनेसे उत्तम श्रद्धा होती है सत्संगमें सुनी हुई बातको अपनी शक्तिके अनुसार धारण करना चाहिये। इसकी सामथ्र्य बहुत है जैसे चिनगारी अग्नि उत्पन्न करनेके लिये पर्याप्त है।


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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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