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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


२१. अपना मित्र अगर धनी भी हो तो उसका धन लेनेकी आशा नहीं करनी चाहिये। इस प्रकारकी आशा प्रेममें कलंक लगानेवाली है।

२२. प्रेमकी रक्षा करनेमें आप ही हेतु है, जैसे महाराज युधिष्ठिर अपने धर्मका पालन अपने-आप ही करते थे, इस प्रकार अपनी इज्जत रखना अपने हाथ ही है।

२३. मेरेसे जो प्रेम करे वही मुझे प्रिय है, मेरेसे जिसका जितना प्रेम है वह मुझे उतना ही प्रिय है, यह भगवान् का वचन है।
'ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।' (गीता ४।११)

२४. निष्कामभावसे प्राणिमात्रके साथ प्रेम करना भगवान् को खरीद था लेना है। यह बर्ताव महापुरुषोंद्वारा किया गया है। इस बातपर आँख मूंदकर विश्वास करना चाहिये। पालन करनेसे महान् लाभ है।

२५. जिस प्रेममें ईष्र्या न हो, वह प्रेम ऊँचे दरजेका है।

२६. स्त्रियोंमें प्रधान दोष-
(१) वाणीके संयमका अभाव
(२) मूढ़ता
(३) मर्म समझनेकी शक्तिका अभाव
(४) सकामभाव
(५) बात सुने उसका उलटा अर्थ समझना

२७. नीच पुरुष भी भगवान् की भक्ति करनेसे उत्तम ही समझनेके योग्य है। जैसे-अजामिल।

२८. चार बातें बहुत कीमती हैं
(१) कोई व्यक्ति छोटे दरजेसे ऊँचे दरजेपर पहुँच जाय तो उसको बड़ा ही मानना चाहिये।
(२) किसीका पदाफाश नहीं करना चाहिये।
(३) नौकरसे होनेलायक काम नौकरसे ही करवाना चाहिये।
(४) जिससे मन फट जाय उसके पास नहीं रहना चाहिये।

२९. समयकी अमोलकताकी हर समय याद रखना चाहिये।

३०. मन लगाकर भजन और शास्त्रका अभ्यास करनेसे जितना लाभ एक वर्षमें होता है, उतना लाभ बिना मनके करनेसे १०० वर्षमें भी नहीं होता।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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