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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


३१. दो बातोंसे परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती-एक तो साधनके न करनेसे, दूसरा युक्ति नहीं जाननेसे।

३२. भगवान् के भजनके समान पापका नाश करनेवाली संसारमें
कोई वस्तु नहीं है। भगवान् के एक नामकी इतनी सामथ्र्य है कि सम्पूर्ण पापोंको नष्ट कर सकता है।

३३. मन लगाकर भजन-ध्यान-सत्संग करनेके लिये मनसे हरदम लड़ाई करता रहे और मनको समझाता रहे कि ऐसी अवस्थामें तेरी मृत्यु हो जायगी तो तेरी क्या दशा होगी।

३४. ज्यादा लाभ हो ऐसे काममें समय बिताना चाहिये। सबसे ऊँचा काम यह है-
(१) ऊँचे दरजेकी वार्ता अनुभवी पुरुषोंद्वारा सुननी।
(२) जपसहित ध्यान।
(३) गीताजीका अर्थ और भावसहित मनन करना।
(४) भगवान् के नामका जप तथा श्रीमद्भगवद्रीताके मूल श्लोकोका पठन।
चौथी बातके १०० वर्ष करनेसे जितना लाभ है उतना ऊपरवाली बातोंको काममें लानेसे ५-७ वर्षमें हो सकता है। प्राय: मनुष्योंके द्वारा चौथी बात ही होती है।

३५. युक्तिसहित साधन करनेसे बहुत जल्दी परमात्माकी प्राप्ति हो जाती है।

३६. कर्म आसक्तिसे रहित होकर करे। उसके सिद्ध होने न होनेमें समान भाव रखें।

३७. मृत्युको हर समय सामने खड़ी देखे चाहे जब ले जाओ, जो इस प्रकार तैयार रहे उसका नाम कृतकृत्य है।

३८. निष्कामभावसे तन, मन, धन दूसरेके काममें लग जाय वही समय काममें आया, बाकी धूलमें गया।

३९. सत्ययुगमें केवल सतोगुणी वृत्तिसे ही कल्याण नहीं होता। स्वाभाविक ही सतोगुणी वृत्ति होती है, किन्तु कल्याण तो साधनसे ही होता है।

४०. भगवान् का भक्त जिस रूपकी प्रातिके लिये भगवान् उसी रूप से उसको प्राप्त हो जाते हैं, जैसे निराकर, साकार, दो भुजा चार भुजा, विराट्स्वरूप इत्यादि। 

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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