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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


४१. ऐलोपैथिक तथा होम्योपैथिक दवाई कभी नहीं लेनी चाहिये। प्राण भले ही चले जायँ। माता-पिताके कहनेपर भी नहीं लेना चाहिये, क्योंकि त्यागी हुई वस्तु को कभी ग्रहण नहीं करना चाहिये। जैसे भीष्मपितामह और श्रीरामचन्द्रजीने त्यागी हुई वस्तु ग्रहण नहीं की।

४2. दुःखों को प्राप्त होनेपर भी आनन्द ही माने।

43. श्रीगीताजीका अर्थ बहुत सरल है उसका भी सार त्यागसे भगवत्प्राप्ति है।

४४. गजल गीताका पाठ रात्रिमें सोते चाहिये।

45. प्रेमभिक्ताकाश निय प्रासै सोच-समझकर पढ़ना चाहिये।

46. मुझे गीता और धार्मिक ग्रन्थों का प्रचार सबसे ज्यादा प्रिय है।

47. लेख लिखकर छोड़ जाने से संसार कै बहुत हित है। जैसे ऋषि-मनियों की कृति।

48. श्रीगीताजी का प्रचार सत्संग छोड़कर भी करना उत्तम है।

49. नित्य सत्संग करनेवाले की अन्तकालतक मुक्ति में शंका नहीं है, यदि कोई नित्य सत्संग करनेके लिये आज ही नियम लेता है और वह यदि आज ही रात्रिमें मर गया तो भी उसका उद्धार हो जायगा।

50. श्रद्धा का विषय-
(१) उत्तम श्रद्धा राजा द्रुपदकी महादेवजीके वचनों में थी। उनके वचन से अपनी कन्या को पुत्र मानकर उसका विवाह भी कर दिया।
(२) जबालाके पुत्र सत्यकामकी गुरुके वचनोंमें।
(३) शुकदेवजीकी राजा जनकके वचनोंमें।
(४) द्रोणाचार्यकी महाराज युधिष्ठिरके वचनोंमें।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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