गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
५१. भगवान् चाहे न मिलें, अनन्य प्रेम जल्दी होना चाहिये।
५२. भगवान् में प्रेम होकर संसारमें जीना हो तो उससे बढ़कर
५३. भगवान् के भक्तोंकी पहचान यह है कि जिनके भगवान् में प्रेम हो, भगवान् की याद आये।
५४. महात्मा पुरुषोंके आचरणोंको याद करनेसे बहुत लाभ है-
(१) चाहे जितनीं शारीरिक व्याधि हो उस समय भीष्मजीको याद कर ले।
(२) जिस जगह न्याय करनेका काम पड़े उस जगह प्रहादजीको याद कर ले।
(३) अपने साथ द्वेष करनेवालोंपर भी दया करनी जैसे जयदेव कवि।
(४) अपने शत्रुओंकी भी दूसरोंसे रक्षा करनेमें महाराज युधिष्ठिर।
(५) माता-पिताकी सेवा करनेमें श्रवण एवं आज्ञा-पालनमें रामजी।
(६) प्रेम करनेकी इच्छावालोको भगवान् श्रीरामचन्द्रजी, भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रजीका बर्ताव याद करना चाहिये।
(७) विषयासत पुरुषोंको महाराज शुकदेवजी, ऋषभदेवजीको याद करना चाहिये।
५५ तन-मन-धनसे सेवा करनेका विषय-
(१) निष्कामभावसे दस हजार रुपया लगाना (धन)
(२) एक दिन भगवान् का भजन करना (तन)
(३) एक मिनट मनसे भगवान् का चिन्तन (मन)
फलमें तीनों बराबर है। मैं आजकल लोगोंकी सेवा शरीरसे तो एक या दो घंटा करता हूँ, बाकी मनसे १-२ घंटासे भी ज्यादा करता हूँ। मैं अपने मनमें यही सोचता रहता हूँ कि लोगोंका उद्धार किस तरह हो। यदि मेरे सन्निपात हो जाय तो यह बात वायु प्रकोपसे बाहर प्रकट हो सकती है कि सबका कल्याण कैसे हो, उद्धार कैसे हो, इसी प्रकार बहकना होगा।
५६. श्रीगीताजीका घर-घरमें प्रचार करना चाहिये, रोम-रोममें रमानी चाहिये।
५७. संसारकी परम सेवा करनेवालोंके उद्धारमें तो संशय ही नहीं है, केवल भाव रखनेवालोंका भी उद्धार हो सकता है।
५८. अपने धर्मके पालनसे कल्याण निश्चित है। उदाहरण-गुरु गोविंदसिंहके पुत्र।
५९. श्रीगीताजीका प्रचार सम्पूर्ण जातियोंमें अंग्रेज, मुसलमानोंमें भी करना चाहिये।
६०. विद्या और त्याग जिस समाज में होगा वह समाज कभी नहीं गिर सकता। विद्या, त्याग तो मनुष्यके दो पंख हैं। असली पंख तो त्याग है, दूसरा विद्या।
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- सत्संग की अमूल्य बातें