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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


६१. ध्यानका लोग आदर नहीं करते। जिसका आदर करते हैं वही प्राप्त हो सकता है। अनन्य ध्यानसे भगवान् की प्राप्ति हो; इसमें संदेह ही क्या है, मुख्य ध्यानसे ही जीवन्मुक्त हो जाता है।

६२. अग्नि, गाय, ब्राह्मण, तुलसी, गंगा इनका देवताके समान आदर रखना चाहिये।

६३. वर्तमान समयमें अकाल आदि जो-जो आपत्तियाँ पड़ी हुई हैं वहाँ अन्न आदिकी सहायता दी जाय तो यह सात्विक दान है।

६४. जो भगवान् के नामका जप और स्वरूपका ध्यान करता रहता है उसे भगवान् स्वयं आकर दर्शन देते हैं।

६५- आश्रय, प्रेरणा, आज्ञा, शिक्षा, उपदेश, वरदान एक-से-एक तेज है। प्रेरणाके अनुसार साधन करनेसे वरदानकी तरह लाभ हो सकता है।

६६. जिस आदमीमें जो गुण हो उसका चिन्तन करनेसे उसका वह गुण आ जाता है। जैसे-श्रीभगवान् का और भगवान् के भक्तोंके चिन्तनसे उनके गुण आ जाते हैं।

६७. भजन-ध्यान होनेमें साधन करनेवालोंके पास धन होनेकी अपेक्षा ऋण होना ज्यादा बाधक है।

६८. श्रीभगवान् की पूर्ण कृपा तो सदा ही है, इस समय विशेष कृपा है। चेष्टा न करनी बहुत मूर्खता है, अपनी तरफकी त्रुटि है।

६९. पाँच बातें अमूल्य हैं-प्रेम, ज्ञान, श्रद्धा, उपरामता, वैराग्य। ये रुपयोंसे नहीं मिलती हैं। इनमें प्रेम ही प्रधान है। प्रेम वाले को साकार-निराकार स्वरूप की प्राप्ति होती है, ज्ञानवालेको सचिदानन्दघनकी प्राप्ति होती है।

70. श्रीभगवान् के दर्शनकी भी इच्छा नहीं रखनी चाहिये, यदि दर्शनकी इच्छा नहीं रखनेसे साधन ढीला होता हो तो भगवान् के मिलनेकी इच्छा रखनी चाहिये।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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