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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।

महात्मा की शरण


दो बातोंपर जोर देना चाहिये- (१) भगवान् को हर समय याद रखनेकी चेष्टा (२) सत्य बोलना। तीसरी बात और शामिल करो तो नियमपूर्वक सन्ध्या-वन्दन कर ली। यह समझो कि हमारे ऊपर भगवान् का हाथ है। कोई चिन्ताकी बात नहीं है। थोड़ा-बहुत तो मेरा विश्वास करो आपके प्रत्यक्ष लाभ है।

जैसे बीमा कम्पनीमें बीमा बेचा जाता है। ऐसे ही पारमार्थिक बीमा भी बिकता है, इसमें पारमार्थिक लाभ है। बीमा महात्मा लोग लेते हैं, प्रीमियमके रूपमें मैं और मेरापन देना पड़ता है। जो जितना मैं और मेरापन दे देता है उसकी उतनी ही बीमा बिक गयी। सारा में-मेरापन देनेसे सारी बीमा बिक गयी। चाहे दलालके मार्फत सौदा करे चाहे सीधा कम्पनीमें खुद परमात्माको सीधा ही बेच दे, चाहे किसी सन्त महात्माकी मार्फत बेच दे, अच्छे दलाल कम्पनीमें पहुँचा देते हैं। कोई बीच में खानेवाला दलाल हो कम्पनी तक नहीं पहुँचाये तो कम्पनी उसकी खबर लेती है। मैंपनका अर्पण-जैसे जनकजीने याज्ञवल्क्यकी सब कुछ अर्पण कर दिया। याज्ञवल्क्यने कहा तुम हमारे नौकर होकर काम करो। उद्दालक शिष्य सत्यकामने अपना शरीर अर्पण कर दिया, उनकी आज्ञानुसार गायें चराने वनमें चला गया। रोगी आदमी वैद्यकी अपना शरीर अर्पण कर देता है चाहे वह जहरकी पिचकारी ही दे, जो कुछ औषध दे उसके कहे अनुसार पथ्य परहेज करे। ईश्वरपर विश्वास हो तो वे उसको धोखेमें पड़नेसे निकाल देते हैं। उघरहिं अन्त न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू। ठग तो अपना काम करते ही हैं। ठगनेकी चेष्टा करते ही हैं, पर जिसका भगवान्पर भरोसा होगा,

भगवान् उसे बचा देंगे। परमात्माकी कंपनी फेल नहीं होती। मुक्तिरूपी फल निश्चय मिलता है। कम जोखिम बेचे तो कम फल मिलता है। महात्माकी एक आने शरण है तो एक आना, दो आना है तो दो आना और चार आना है तो चार आना, जितनी श्रद्धा है और जितना महात्माके आश्रित है उतने ही विभागकी जोखिम बिकती है। जो कम बेचता है उतनी ही जोखिम कम बिकती है। फल भी उसीके अनुसार होता है। उदाहरण रोगी डॉक्टरको पूरा समर्पण करता है शरीर उसके हाथमें है चाहे जैसे चीर दे। हम उसके पूरा समर्पण न करें उसकी दस बात मानें, एक बात न मानें डॉक्टरने फल देनेको मना किया, हमने दूसरे डॉक्टरसे पूछकर फल दे दिया, रोगीको नुकसान हो गया तो डॉक्टर जिम्मेवार नहीं है। हम जहर खाकर मर जायें तो कम्पनी बीमाका रुपया कैसे दे। इस मामलेमें यह विशेषता है कि डॉक्टरकी मालूम होते ही विषसे रक्षा कर लेते हैं। भगवान् के शरण होकर गद्गद वाणीसे प्रभुसे प्रार्थना करे कि हे प्रभु! मैं क्या करूं, मेरा मन, तन, धन सब आपका है। यह मैं किस प्रकार आपके समर्पण करूं। शुद्ध भावसे पूछे तो भीतरसे भाव पैदा होगा। भीतरसे यह भाव पैदा हो कि सत्य बोलो, मुक्तिदायक उन्नति करनेवाला काम करो। उससे फिर हटो मत, उसीके अनुसार करते रहो, शक्ति रहते हुए भी नहीं करते तो उतने अंशमें शरणमें कमी है। उस कमीके रहते हुए भी भगवान् उद्धार कर सकते हैं, पर यह रियायत है पहलेसे ही रियायतका आश्रय लिया जाय तो कहीं शरणमें विशेष कचाई रह जायगी। याचना करनी ही नहीं यह धार लें तो और अच्छी बात है। रियायत न लेनी ही सबसे उत्तम है। भगवान् के यहाँ ही बीमा बिकती है पर कोई सन्त महापुरुष दलाल मिल जार्यों तो हमारे लिये बहुत सुभीता है। स्पष्ट आज्ञा मिल जाती है कि इस धनका यह उपयोग करो, स्त्री पुरुषको रखो या त्याग दो। स्पष्ट व्यवस्था मिल जाती है। सीधे शरणमें कहीं ठगाई हो सकती है। प्रेरणा कामकी हो हम समझ लें भगवान् की। उदाहरण इस समय संसारमें आपत्ति आ रही है। भगवान् के लिये शरीरसे तथा सम्पत्तिसे सेवा करनेकी प्रेरणा हुई। ५०००/- लगानेकी बात मनमें आयी, फिर मनमें आया कि स्त्री-पुत्रोंकी भी रक्षा करनी है, मन विचलित हुआ, १०००/- ही लगाया। दो वर्ष बाद दस हजार और आमदनी हुई। उसके मनमें पश्चाताप होने लगा, पहले भूलकी, कामकी प्रेरणासे कम लगा। ईश्वरपर विश्वास न हो फिर उसकी दुर्गति ही होगी। शरण होना ही बीमा बेचना है। ममता-अहंकारकी जोखिम बेचनी है, बुद्धि लड़ानी कम जोखिम बेचनी है। डॉक्टरके शरण होकर बुद्धि लगाना उतने अंशमें कम शरण है। महात्माकी शरण, गुरुकी शरण, भक्तकी शरण, ईश्वरकी शरण किसीकी भी शरण होकर अहंता-ममता, मैं-मेरा इनको उनके आश्रित कर देना चाहिये। चाहे वे मिट्टीमें मिला दें, मिट्टीमें तो मिलेंगे ही। स्वत: ही प्राण तो जायेंगे ही। कुत्तेकी मौत तो मरेंगे ही, बिना शरण होनेवालोंकी यही दशा है। कोई महापुरुष मिल जायें तो जोखिम उनको सौंप देना चाहिये।



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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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