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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन

आध्यात्मिक प्रवचन

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1007
आईएसबीएन :81-293-0838-x

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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।


८१. परमसेवा-जिन आचरणोंके द्वारा जीवोंको परमसुख मिले, वही परमसेवा है।

८२. योगदर्शनके अनुसार साधन करनेमें एक-दो घंटा रोज लगाना चाहिये, जैसे लोग नये कामको सीखनेमें लगाते हैं।

८३. जिनके घरमें नित्य कथा-सत्संग होती है, उनके भाग्यकी बड़ाई कोई भी नहीं कर सकता।

८४. भगवान् का काम करे और उसका भार उनपर ही छोड़ दे।

८५. हरि-चरणोंमें प्रेम होनेके लिये ८ बातें सार हैं-
(१) भगवान् की शरण-जो कुछ सुख-दु:खादि आकर प्राप्त हो उनको भगवान् की आज्ञासे प्राप्त हुए भानकर आनन्दके सहित स्वीकार करना।
(२) जीवोंकी परमसेवा-सबको भगवान् की भक्तिमें लगानेकी कोशिश करना।
(३) सत्संग-भगवद्रतोंका संग, यदि उनका संग न मिले तो उनके भक्तोंका संग भी बहुत लाभदायक है। (४) एकान्त साधन-एकान्तमें परमेश्वरके ध्यान करनेकी चेष्टा, यदि ध्यान न लगे तो ध्यान लगानेके लिये श्रीगीताजीके ध्यानविषयक श्लोकोंके अर्थका विचार।
(५) व्यवहार कालका साधन—परमेश्वरके स्वरूपका चिन्तन करता हुआ चलते-फिरते सब समय परमेश्वरके नामके जपका अभ्यास।
(६) साधनमें हेतु-भगवान् के सिवाय और किसी चीजकी भी इच्छा नहीं करनी। केवल भगवान् के मिलनेकी उत्कट इच्छा।
(७) भगवदर्थ कर्म—जिस काममें भगवान् प्रसन्न हो, उस कामको करनेकी चेष्टा यानि हिंसा वर्जित सदाचार।
(८) सब जीवोंकी सेवा-निष्कामभावसे सब जीवोंकी सेवा यानी जिस प्रकारसे मनुष्योंको तथा सब जीवोंको सुख पहुँचे वैसी चेष्टा। इन सब बातोंको काममें लानेसे भगवान् में बहुत ही जल्दी प्रेम हो सकता है। इनमेंसे एक भी बात काममें लाये तो परमात्मा मिल सकते हैं। इन बातोंमें एक-से-एक अधिक लाभदायक है यानी ८ नम्बरसे ७ नम्बरवाली अधिक लाभदायक है और ७ से ६ वाली। इसी प्रकार क्रमसे समझना चाहिये।

८६. स्त्रियोंकी विद्या सिखानी चाहिये। घरमें खर्च लगे उसको बराबर व्योरेवार लिख ले तो बहुत लाभ है तथा रोकड़ जोड़नी इत्यादि सिखानी चाहिये। स्त्रियोंको कुछ पता नहीं रहता इसलिये पतिके मरनेके बाद उनका घर-का-घर बरबाद हो जाता है।

८७. गीताजीका अर्थसहित पाठ करनेसे बहुत लाभ है, यदि अन्तकालमें याद रह जाय तो उद्धार हो जाय।

८८. चलते समय सब जगह परमात्माको देखना चाहिये। इस तरह साधन करनेसे बहुत लाभ होता है। नेत्रोंसे जो चीज देखनेमें आती है वह चीज है नहीं, न वह पदार्थ ही है, न शरीर ही है, वास्तव में एक परमात्मा ही परिपूर्ण है, जो दीखता है सो है नहीं। जैसे-स्वप्नका संसार और मृगतृष्णाका जल तथा तिरमिरे। वास्तव में यह दृष्टान्त भी यहाँ घटता नहीं, एक आनन्दघन ही है, आनन्द है, बोध है, ज्ञान स्वरूप है, इस तरह विचार करनेसे पहले तो आनन्दकी लहर उठती हुई भान होती है। पीछे और साधन बढ़नेसे एक ज्ञानस्वरूप ही रह जाता है।

८९. अपनी तरफसे तो मुसलमानोंको भी किसी तरहकी तकलीफ नहीं पहुँचानी चाहिये। अपनी चाहे जितनी शक्ति हो तो भी उनको कष्ट नहीं देना चाहिये और हिन्दुओंको मदद देनी चाहिये। मुसलमानोंको जबरदस्ती हिन्दू बनाना अन्याय है, वैसे ही हिन्दुओंको मुसलमान बनाना अन्याय है।

९०. गीतामें एक-एक शब्द हीरा मानिककी तरह जड़ा है।

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    अनुक्रम

  1. सत्संग की अमूल्य बातें

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