गीता प्रेस, गोरखपुर >> आध्यात्मिक प्रवचन आध्यात्मिक प्रवचनजयदयाल गोयन्दका
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इस पुस्तिका में संग्रहीत स्वामीजी महाराज के प्रवचन आध्यात्म,भक्ति एवं सेवा-मार्ग के लिए दशा-निर्देशन और पाथेय का काम करेंगे।
९१. मेरा मत गीता है। गीतासे विरुद्ध चाहे वेद ही क्यों न हो, मुझे मान्य नहीं है।
९२. श्रुति-स्मृति सबका सार गीता है।
९३. अर्जुन भगवान् के अच्छे भक्त थे। भगवान् को साक्षात् जाननेमें कुछ त्रुटि रहनेके कारण ही इतने भारी भक्तमें कुलका मोह हो गया। माया ऐसी चीज है, अद्भुत घटना भी घटा देती है।
९४. भगवान् में प्रेम होनेका उपाय है भगवत्-भक्ति भगवत्-भक्ति ही प्रेमका स्वरूप है। भगवान् में अत्यन्त अनुरागको प्रेम कहते हैं और उस भगवत्-भक्तिके जो भेद हैं उनके पूरी तरह पालनसे भगवान् में अनन्य प्रेम हो जाता है।
नवीन नवधा भक्ति-
(१) सत्संग-भगवद्रभतके दर्शन, चिन्तन, स्पर्शसे तथा उनके वचन सुननेसे अति हर्षित होना।
(२) कीर्तन-प्रेममें मग्र होकर हर समय भगवन्नामका स्मरण तथा प्रेम और प्रभावके सहित भगवान् के गुणोंका कथन।
(३) स्मरण-सारे संसारमें भगवान् के स्वरूपका चिन्तन।
(४) शुभेच्छा- भगवान् के दर्शनकी और उनमें प्रेम होनेकी उत्कट इच्छा।
(५) संतोष-जो कुछ आकर प्राप्त हो उसको भगवदाज्ञासे हुआ मानकर आनन्दसे पतिव्रता स्त्रीकी भाँति स्वीकार करना।
(६) सेवा-सब जीवोंको परमेश्वरका स्वरूप समझकर निष्कामभावसे उनकी सेवा और सत्कार करना।
(७) निष्काम कर्म-निष्कामभावसे शास्त्रोत सब कमॉमें ईश्वरके अनुकूल बर्तना अर्थात् जिससे परमेश्वर प्रसन्न हों वही कर्म करना।
(८) उपरामता-संसारके भोगोंसे चितको हटाना।
(९) सदाचार-ईश्वरमें प्रेम होनेके लिये अहिंसा सत्यादिका पालन करना।
९५ साधन बढ़ाना चाहिये; किन्तु काम नहीं छोड़ना चाहिये। साधन एक-एक माला कर-कर बढ़ाये।
९६. ब्रह्मचर्याश्रम, गीताका प्रचार, सत्संगका प्रचार यह काम बहुत अच्छा है। देशी कपड़ा, जूता, ब्रह्मचर्याश्रम, गीताजीका प्रचार इनके करनेमें बहुत कठिनाई पड़ी है। अब आपको कितनी सुगमता है। कलियुगमें आगे समय बहुत खराब आ रहा है।
९७. जितना आराम है उससे लाख गुना ही दु:ख है। मनुष्यके एक जन्मका किया हुआ पाप ८४ लाख योनियोंमें भोगना पड़ता है तथा स्त्रीके साथ भोग करनेमें एक मिनटका आराम मालूम होता है; किन्तु लाखों वर्ष नरक में दु:ख भोगना पड़ता है।
९८. एक झूठ बोलनेसे सैकड़ों जन्म नरक में पड़ना पड़ता है।
९९. जितना आरामका त्यागी है उतना ही भगवान् के नजदीक है।
१००. एक नास्तिक भी है; किन्तु उसमें थोड़ा त्याग है तो उनका आदर करते हैं। यह त्यागकी ही महिमा है।
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- सत्संग की अमूल्य बातें