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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान कैसे मिलें

भगवान कैसे मिलें

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :126
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1061
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है भक्त को भगवान कैसे मिलें....

Bhagwan Kaise milen - a Hindi book by  Gita Press

निवेदन

मनुष्य-जन्मका एकमात्र उद्देश्य भगवत्प्राप्ति ही है। उस उद्देश्य पूर्ति के लिए सत्संग, भगवद्भजन, निष्काम सेवा सरल साधन है। इन बातोंको जीवनमें कैसे लाया जाय? इनका क्या महत्त्व है? श्रद्धेय जयदयालजी गोयन्दका स्वगाश्रममें वटवृक्षके नीचे तथा गीताभवन ऋषिकेशमें ग्रीष्मऋतुमें ३-४ महीनोंके लिये सत्संग का आयोजन करके विशेषरूपसे इन विषयोंपर प्रवचन किया करते थे। उनका भाव था कि सभी भाई लोग जो यहाँ आये हैं अपना कल्याण करके ही जायें। वे भजन, ध्यान, सेवाको ही आदर देते थे। सादी वेशभूषा, सादा भोजन, होती थी। सन् १९४१ के आसपास उन्होंने जो प्रवचन दिये थे, उन्हें किसी सज्जनने नोट कर लिया था। सरल भाषामें अमूल्य बातें हमें जीवनमें लानेके लिये मिल जायें, इस विचारसे उन प्रवचनों को पुस्तकका रूप दिया जा रहा है।

हमें आशा है कि भगवत्प्राप्तिके इच्छुक भाई-बहन इस पुस्तकसे विशेष लाभ उठायेंगे और अन्य भाई-बहनोंको पढ़नेकी प्रेरणा देंगे।

- प्रकाशक

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    अनुक्रम

  1. भजन-ध्यान ही सार है
  2. श्रद्धाका महत्त्व
  3. भगवत्प्रेम की विशेषता
  4. अन्तकालकी स्मृति तथा भगवत्प्रेमका महत्त्व
  5. भगवान् शीघ्रातिशीघ्र कैसे मिलें?
  6. अनन्यभक्ति
  7. मेरा सिद्धान्त तथा व्यवहार
  8. निष्कामप्रेमसे भगवान् शीघ्र मिलते हैं
  9. भक्तिकी आवश्यकता
  10. हर समय आनन्द में मुग्ध रहें
  11. महात्माकी पहचान
  12. भगवान्की भक्ति करें
  13. भगवान् कैसे पकड़े जायँ?
  14. केवल भगवान्की आज्ञाका पालन या स्मरणसे कल्याण
  15. सर्वत्र आनन्दका अनुभव करें
  16. भगवान् वशमें कैसे हों?
  17. दयाका रहस्य समझने मात्र से मुक्ति
  18. मन परमात्माका चिन्तन करता रहे
  19. संन्यासीका जीवन
  20. अपने पिताजीकी बातें
  21. उद्धारका सरल उपाय-शरणागति
  22. अमृत-कण
  23. महापुरुषों की महिमा तथा वैराग्य का महत्त्व
  24. प्रारब्ध भोगनेसे ही नष्ट होता है
  25. जैसी भावना, तैसा फल
  26. भवरोग की औषधि भगवद्भजन

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