गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान कैसे मिलें भगवान कैसे मिलेंजयदयाल गोयन्दका
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प्रस्तुत है भक्त को भगवान कैसे मिलें....
।। श्रीहरिः ।।
भजन-ध्यान ही सार है
पूज्य मामाजीके साथ बनारस आनेके लिये लिखा सो अवश्य आना चाहिये। तीर्थमें समय बिताना चाहिये। अब रतनगढ़में रहनेमें विशेष लाभ नहीं है, बनारसमें भजन-सत्संगमें समय बिताना चाहिये। गाँवके फन्देसे निकलना चाहिये।
समय बीता जा रहा है, चेतना चाहिये। पू० मामाजीके नित्य चरणस्पर्श करते होंगे। उनकी सेवा करनेका भी अभ्यास विशेषरूपसे डालना चाहिये तथा उनके वचनोंका पालन विशेषरूपसे करना चाहिये। उनके इच्छानुसार करना परम धर्म है, बाकी सब साधारण धर्म है। अब भजन-ध्यानके लिये विशेष समय बिताना चाहिये।
संसारके सारे काम तुमने कर लिये। अब तो परमार्थमें ही समय बिताना चाहिये ताकि फिर पश्चाताप नहीं करना पड़े। एकान्तमें बैठकर नियमपूर्वक ध्यानसहित नामजप विशेषरूपसे करना चाहिये। चलते-फिरते, उठते-बैठते हर समय नामजप करना चाहिये और मनसे सर्वत्र भगवान्का दर्शन करना चाहिये। मनसे भगवान्का ध्यान, पूजा, पाठ, भोग, आरती, प्रार्थना, स्तुति और निरन्तर जप करनेका अभ्यास करना चाहिये। जिस प्रकार संसारी मनुष्य संसारका संकल्प करता है, उसी प्रकार तुम्हें भगवान्का संकल्प करना चाहिये। इस प्रकार करनेसे भगवान्का प्रभाव जानकर भगवान्में श्रद्धा-प्रेम बढ़कर साधन तेज हो सकता है और भगवान्का दर्शन होकर भगवान्की प्राप्ति हो सकती है, इसलिये इस कामको विशेष चेष्टासे कर्त्तव्य समझकर करना चाहिये।
आपने लिखा कि हमारे तो आपका ही भरोसा है। भगवान्के शरण होना चाहिये, उनका भरोसा रखना चाहिये। मैं तो एक साधारण मनुष्य हूँ। आपने लिखा कि मन वशमें नहीं है, यदि मनको वश में करना हो तो गीता ६। ३५-३६ की व्याख्यामें गीतातत्त्वविवेचनीमें बहुत-सी बातें लिखी हैं, उसमें आपके जो अनुकूल पड़े उसका अभ्यास करना चाहिये। साधनके लिये विशेष प्रयास करना चाहिये। अभ्यास और वैराग्यसे मन वश में हो सकता है। भगवान्के नामका जप निरन्तर करनेकी चेष्टा करनी चाहिये, भगवान्की शरण होना चाहिये। गीता २।। ७, ९।। ३२-३४ के अनुसार भगवान्की शरण होनेसे दीवाला मिट सकता है, अभ्यास तेज हो सकता है, भगवान् भी विशेष दया कर सकते हैं। मनुष्यकी दयासे कुछ भी काम नहीं चलता।
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