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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान के रहने के पाँच स्थान

भगवान के रहने के पाँच स्थान

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :43
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1083
आईएसबीएन :81-293-0426-0

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प्रस्तुत है भगवान के रहने का पाँच स्थान....

ब्राह्मण बोला–नाथ! मेरा मन सर्वथा आपके ही ध्यानमें स्थित रहे, सम्पूर्ण लोकोंके स्वामी माधव! आपके सिवा कोई भी दूसरी वस्तु मुझे कभी प्रिय न लगे।

श्रीभगवान् ने कहा-निष्पाप ब्राह्मण! तुम्हारी बुद्धिमें सदा ऐसा ही उत्तम विचार जाग्रत् रहता है; इसलिये तुम मेरे धाममें आकर मेरे ही समान दिव्य भोगोंका उपभोग करोगे, किन्तु तुम्हारे माता-पिता तुमसे आदर नहीं पा रहे हैं; अतः पहले माता-पिताकी पूजा करो, इसके बाद मेरे स्वरूपको प्राप्त हो सकोगे। उनके दुःखपूर्ण उच्छ्वास और क्रोधसे तुम्हारी तपस्या प्रतिदिन नष्ट हो रही है। जिस पुत्रके ऊपर सदा ही माता-पिताका कोप रहता है, उसको नरकमें पड़नेसे मैं, ब्रह्मा और महादेवजी भी नहीं रोक सकते।

मन्युर्निपतिते यस्मिन् पुत्रे पित्रोश्च नित्यशः।
तन्निरयं न बाधेऽहं न धाता न च शङ्करः।।

(पद्मपु०, सृष्टिख० ४७।१७८)

इसलिये तुम माता-पिताके पास जाओ और यत्नपूर्वक उनकी पूजा करो। फिर उन्हींकी कृपासे तुम मेरे पदको प्राप्त होगे।

व्यासजी कहते हैं—जगद्गुरु भगवान् के ऐसा कहनेपर द्विजश्रेष्ठ नरोत्तमने फिर इस प्रकार कहा-‘नाथ! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं। तो मुझे अपने स्वरूपका दर्शन कराइये।' तब सम्पूर्ण लोकोंके एकमात्र कर्ता एवं ब्राह्मण-हितैषी भगवान् ने नरोत्तमके प्रेमसे प्रसन्न होकर उस पुण्यकर्मा ब्राह्मणको शङ्ख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये अपने पुरुषोत्तमरूपका दर्शन कराया। उनके तेजसे सम्पूर्ण जगत् व्याप्त हो रहा था। ब्राह्मणने दण्डकी भाँति धरतीपर गिरकर भगवान्को प्रणाम किया और कहा-‘जगदीश्वर! आज मेरा जन्म सफल हुआ; आज मेरे नेत्र कल्याणमय हो गये। इस समय मेरे दोनों हाथ प्रशस्त हो गये, आज मैं भी धन्य हो गया। मेरे पूर्वज सनातन ब्रह्मलोकको जा रहे हैं। जनार्दन! आज आपकी कृपासे मेरे बन्धु-बान्धव आनन्दित हो रहे हैं, इस समय मेरे सभी मनोरथ सिद्ध हो गये; किन्तु नाथ! मूक चाण्डाल आदि ज्ञानी महात्माओंकी बात सोचकर मुझे बड़ा विस्मय हो रहा है। भला, वे लोग देशान्तरमें होनेवाले मेरे वृत्तान्तको कैसे जानते हैं? मूक चाण्डालके घरमें आप अत्यन्त सुन्दर ब्राह्मणका रूप धारण किये विराजमान थे; इसी प्रकार पतिव्रताके घरमें, तुलाधारके यहाँ, मित्राद्रोहकके भवनमें तथा इन वैष्णव महात्माके मन्दिरमें भी आपका दर्शन हुआ है। इन सब बातोंका यथार्थ रहस्य क्या है? मुझपर अनुग्रह करके बताइये।'

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    अनुक्रम

  1. अमूल्य वचन
  2. भगवानके रहनेके पाँच स्थान : पाँच महायज्ञ
  3. पतिव्रता ब्राह्मणीका उपाख्यान
  4. तुलाधारके सत्य और समताकी प्रशंसा
  5. गीता माहात्म्य

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