गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान के रहने के पाँच स्थान भगवान के रहने के पाँच स्थानजयदयाल गोयन्दका
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प्रस्तुत है भगवान के रहने का पाँच स्थान....
श्रीभगवान् ने कहा-विप्रवर! मूक चाण्डाल सदा अपने माता-पितामें भक्ति रखता है। शुभा देवी पतिव्रता है। तुलाधार सत्यवादी है और सब लोगोंके प्रति समान भाव रखता है। अद्रोहकने लोभ और कामपर विजय पायी है तथा वैष्णव मेरा अनन्य भक्त है। इन्हीं सद्गुणोंके कारण प्रसन्न होकर मैं इन सबके घरमें सानन्द निवास करता हूँ। मेरे साथ सरस्वती और लक्ष्मी भी इन लोगोंके यहाँ मौजूद रहती हैं। मूक चाण्डाल त्रिभुवनमें सबका कल्याण करनेवाला है। चाण्डाल होनेपर भी वह सदाचारमें स्थित है; इसलिये देवता उसे ब्राह्मण मानते हैं। पुण्यकर्मद्वारा मूक चाण्डालकी समानता करनेवाला इस संसारमें दूसरा कोई नहीं है। वह सदा माता-पिताकी भक्तिमें संलग्न रहता है। उसने (अपनी इस भक्तिके बलसे) तीनों लोकोंको जीत लिया है। उसकी माता-पिताके प्रति भक्ति देखकर मैं बहुत संतुष्ट रहता हूँ और इसीलिये उसके घरके भीतर आकाशमें सम्पूर्ण देवताओंके साथ ब्राह्मणरूपसे निवास करता हूँ। इसी प्रकार मैं उस पतिव्रताके, तुलाधारके, अद्रोहकके और इस वैष्णवके घरमें भी सदा निवास करता हूँ। धर्मज्ञ! एक मुहूर्तके लिये भी मैं इन लोगोंका घर नहीं छोड़ता। जो पुण्यात्मा हैं, वे ही मेरा प्रतिदिन दर्शन पाते हैं; दूसरे पापी मनुष्य नहीं। तुमने अपने पुण्यके प्रभाव और मेरे अनुग्रहके कारण मेरा दर्शन किया है; अब मैं क्रमशः उन महात्माओंके सदाचारका वर्णन करूंगा, तुम ध्यान देकर सुनो। ऐसे वर्णनोंको सुनकर मनुष्य जन्म-मृत्युके बन्धनसे सर्वथा मुक्त हो जाता है। देवताओंमें भी, माता-पितासे बढ़कर तीर्थ नहीं है, जिसने माता-पिताकी आराधना की है, वही पुरुषों में श्रेष्ठ है। वह मेरे हृदयमें रहता है और मैं उसके हृदयमें। हम दोनों में कोई अन्तर नहीं रह जाता। इहलोक और परलोकमें भी वह मेरे ही समान पूज्य है। वह अपने समस्त बन्धु-बान्धवोंके साथ मेरे रमणीय धाममें पहुँचकर मुझमें ही लीन हो जाता है। माता-पिताकी आराधनाके बलसे ही वह नरश्रेष्ठ मूक चाण्डाल तीनों लोकोंकी बातें जानता है, फिर इस विषयमें तुम्हें विस्मय क्यों हो रहा है?
ब्राह्मणने पूछा-जगदीश्वर! मोह और अज्ञानवश पहले मातापिताकी आराधना न करके फिर भले-बुरेका ज्ञान होनेपर यदि मनुष्य पुनः माता-पिताकी सेवा करना चाहे तो उसके लिये क्या कर्तव्य है?
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