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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान के रहने के पाँच स्थान

भगवान के रहने के पाँच स्थान

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :43
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1083
आईएसबीएन :81-293-0426-0

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प्रस्तुत है भगवान के रहने का पाँच स्थान....

श्रीभगवान् बोले-विप्रवर! एक वर्ष, एक मास, एक पक्ष, एक सप्ताह अथवा एक दिन भी जिसने माता-पिताकी भक्ति की है, वह मेरे धामको प्राप्त होता है।

दिनैकं मासपक्षं वा पक्षाद्धं वापि वत्सरम्।
पित्रोभक्तिः कृता येन स च गच्छेन्ममालयम्।।

(पद्मपु०, सृष्टिख० ४७।२०८)

तथा जो उनके मनको कष्ट पहुँचाता है, वह अवश्य नरकमें पड़ता है। जिसने पहले अपने माता-पिताकी पूजा की हो या न की हो, यदि उनकी मृत्युके पश्चात् वह साँड़ छोड़ता है, तो उसे पितृभक्तिका फल मिल जाता है। जो बुद्धिमान् पुत्र अपना सर्वस्व लगाकर माता-पिताका श्राद्ध करता है, वह जातिस्मर (पूर्वजन्मोंकी बातोंको स्मरण करनेवाला) होता है और उसे पितृभक्तिका पूरा फल मिल जाता है। श्राद्धसे बढ़कर महान् यज्ञ तीनों लोकों में दूसरा कोई नहीं है। इसमें जो कुछ दान दिया जाता है, वह अक्षय होता है। दूसरोंको जो दान दिया जाता है; उसका फल दस हजार गुना होता है। अपनी जातिवालोंको देनेसे लाख गुना, पिण्डदानमें लगाया हुआ धन करोड़ गुना और ब्राह्मणको देनेपर वह अनन्त गुना फल देनेवाला बताया गया है। जो गङ्गाजीके जलमें और गया, प्रयाग, पुष्कर, काशी, सिद्धकुण्ड तथा गङ्गा-सागर-सङ्गम तीर्थमें पितरोंके लिये अन्नदान करता है, उसकी मुक्ति निश्चित है तथा उसके पितर अक्षय स्वर्ग प्राप्त करते हैं। उसका जन्म सफल हो जाता है। जो विशेषतः गङ्गाजीमें तिलमिश्रित जलके द्वारा तर्पण करता है, उसे भी मोक्षका मार्ग मिल जाता है, फिर जो पिण्डदान करता है, उसके लिये तो कहना ही क्या है। अमावास्या और युगादि तिथियोंको तथा चन्द्रमा और सूर्यग्रहणके दिन जो पार्वण श्राद्ध करता है, वह अक्षय लोकका भागी होता है। उसके पितर उसे प्रिय आशीर्वाद और अनन्त भोग प्रदान करके दस हजार वर्षोंतक तृप्त रहते हैं। इसलिये प्रत्येक पर्वपर पुत्रोंको प्रसन्नतापूर्वक पार्वण श्राद्ध करना चाहिये। माता-पिताके इस श्राद्ध-यज्ञका अनुष्ठान करके मनुष्य सब प्रकारके बन्धनोंसे मुक्त हो जाता है।

जो श्राद्ध प्रतिदिन किया जाता है, उसे नित्य श्राद्ध माना गया है। जो पुरुष श्रद्धापूर्वक नित्य श्राद्ध करता है, वह अक्षय लोकका उपभोग करता है। इसी प्रकार कृष्णपक्षमें विधिपूर्वक काम्य श्राद्धका अनुष्ठान करके मनुष्य मनोवाञ्छित फल प्राप्त करता है। आषाढ़की पूर्णिमाके बाद जो पाँचवाँ पक्ष आता है, [जिसे महालय या पितृपक्ष कहते हैं] उसमें पितरोंका श्राद्ध करना चाहिये। उस समय सूर्य कन्याराशिपर गये हैं या नहीं इसका विचार नहीं करना चाहिये। जब सूर्य कन्याराशिपर स्थित होते हैं, उस समयसे लेकर सोलह दिन उत्तम दक्षिणाओंसे सम्पन्न यज्ञोंके समान महत्त्व रखते हैं। उन दिनों में इस परम पवित्र काम्य श्राद्धका अनुष्ठान करना उचित है। इससे श्राद्धकर्ताका मङ्गल होता है। यदि उस समय श्राद्ध न हो सके तो जब सूर्य तुलाराशिपर स्थित हों, उसी समय कृष्णपक्ष आदिमें उक्त श्राद्ध करना उचित है।

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    अनुक्रम

  1. अमूल्य वचन
  2. भगवानके रहनेके पाँच स्थान : पाँच महायज्ञ
  3. पतिव्रता ब्राह्मणीका उपाख्यान
  4. तुलाधारके सत्य और समताकी प्रशंसा
  5. गीता माहात्म्य

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